February 9, 2009

ये शहर बॉम्बे-अश्वनी

ये शहर मेरी नस नस में बहे जाता है ।
इसकी सड़कें मेरी दोस्त हैं बचपन की..
सड़कों पे ही जवानी में कदम रखा है..
मैं इसकी इक इक गली से वाकिफ हूँ..
इस शहर के लोग मुझे समझते हैं जितना..
कभी कोई मुझे नही समझा उतना..
बन के इक शोला सीने में इसके भड़क रहा हूँ मैं..
इस शहर में इक धड़कन सा धड़क रहा हूँ मैं..

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