March 5, 2010

जिद्दी जिद्दी-अश्वनी

मेले लगे हैं...
मगर आज हम फिर से अकेले चलें हैं...
भीड़ से हटके चलने कि आदत पुरानी है...
अब इस आदत को जिद में बदलने चलें हैं

March 1, 2010

भ्रमित-अश्वनी

निकला था घर से
सोच के कुछ कि इधर जाऊंगा
उधर जाऊंगा
अभी आके जहां पहुंचा हूँ
समझ नहीं आता
कहाँ हूँ ...
किधर जाऊंगा
कभी मंजिल ने छला..
कभी रस्ता निकला मनचला
कभी पता चला
कभी नहीं
बहुत सोच समझ के यात्रा शुरू करो तो भटकने के चांसेस ज्यादा रहते हैं...
आप क्या कहते हैं??

चंद चिन्दियाँ-अश्वनी

आज फिर कुछ लिखने का मन है...
आज फिर दिल से अपने बातें कि जायेंगी...
आज फिर कोई नई बात लगेगी पता....
आज फिर मुझे देर से नींद आएगी।


आज सपने देखे जायेंगे कुछ हसीं
आज साथ चंदा सूरज खिलेंगे कहीं
आज बिन मौसम बारिश भी होगी
आज मस्त मोर,बस्ती में नाचेगा कहीं