April 30, 2012
April 29, 2012
April 28, 2012
April 24, 2012
आप क्या कहते हैं? - अश्वनी
होने और ना होने के बीचे होना
मुझे अच्छा नहीं लगता है
होने और ना होने के बीचे होना
मुझे नफरत है
होने और ना होने के बीच होने से
मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
होने और ना होने के बीचे होने से
एक ही स्थिति एक इंसान को
कई तरह से प्रभावित करती है
जब तक जीवन है
ये चरण लगे ही रहते हैं
आप क्या कहते हैं ?
April 23, 2012
April 21, 2012
सपना रे - अश्वनी
मैं हर दिन कविता कह सकता हूँ
क्योंकि मैं हर रोज़ कोई न कोई सपना देखता हूँ
सपने को शब्द दे दो तो कविता हो सकती है
ऐसा मैंने पाया है
जैसे मेरा कल का सपना
नन्हे हाथों से छूता मेरा चेहरा
जैसे छू रहा हो आइना
हैरान था अपना सा कोई देख कर
इक अपना सा बड़े चेहरे वाला
पर उस से ज़्यादा हैरान मैं था
कैसे सपने में दिखा गया वो मुझे
जो दिखा नहीं जीवन में
कैसे महसूस किया वो स्पर्श
कैसे आत्मसात हुई वो गंध
कैसे हुई वो अनुभूति
सपना देखते हुए सपना,सपना नहीं लगता
इसीलिए सपना लगता है मुझे कविता सा
जब घटित हो रही होती है तब
कविता भी कविता सी कहाँ लगती है
क्योंकि मैं हर रोज़ कोई न कोई सपना देखता हूँ
सपने को शब्द दे दो तो कविता हो सकती है
ऐसा मैंने पाया है
जैसे मेरा कल का सपना
इक नन्हा खेल रहा था गोद में
हुबहू मेरा अक्स नन्हे हाथों से छूता मेरा चेहरा
जैसे छू रहा हो आइना
हैरान था अपना सा कोई देख कर
इक अपना सा बड़े चेहरे वाला
पर उस से ज़्यादा हैरान मैं था
कैसे सपने में दिखा गया वो मुझे
जो दिखा नहीं जीवन में
कैसे महसूस किया वो स्पर्श
कैसे आत्मसात हुई वो गंध
कैसे हुई वो अनुभूति
सपना देखते हुए सपना,सपना नहीं लगता
इसीलिए सपना लगता है मुझे कविता सा
जब घटित हो रही होती है तब
कविता भी कविता सी कहाँ लगती है
प्रेमिका सी कविता - अश्वनी
प्रेमिका सी कविता
कई दिन के बाद मिलो तो बात नहीं करती आसानी से
अनमनी सी रहती है
रूठी
धीरे धीरे खुलती है
पंखुड़ी सी
उलाहना सा देती है
मिलना नहीं था अक्सर
तो
क्यूँ जान पहचान बढ़ाई
फिर कहती है कि
आ ही गए हो तो बातें कर लो दो चार
फिर शरारती हंसी हंसती है
छूने लगती है बहाने बहाने
कहती है
मैं तो मज़ाक कर रही थी
मिलते हो तो अच्छा ही लगता है
चाहे सालों बाद मिलो
पर मिलना ऐसे ही
जैसे मिल रहे हो पहली बार
अजनबी मगर मेरे अजनबी
और हाँ
मुस्कुराना मत छोड़ना
तुम्हें मुस्कुराता देख तो पास आती हूँ तुम्हारे
अजनबी मगर मेरे अजनबी!!!
April 8, 2012
सोच का चक्का जाम - अश्वनी
झिलमिल तस्वीर दिखे जब साफ़ आँखों से
तब ख़लल दिमाग का है दोषी
दिमाग में घूमता इक सर्प
कुंडली मारे लपेटता है मगज़
स्पष्ट को करता धुंधला
धुंधले को करता और धुंधला
फिल्टर से छाना पानी
आत्मा कैसे छानूं?
साबुन से धोए हाथ
लहू कैसे धोऊँ?
डस्टर से झाड़ा बिस्तर
गिल्ट कैसे झाडूं?
ढक लिया तन
कैसे ढकूँ मन?
बुझा दी बत्ती
डर कैसे बुझाऊं?
पानी से साफ़ किया चेहरा
अक्स कैसे साफ़ करूँ?
सुला दिया जिस्म
विचार कैसे सुलाऊं?
बंद की आँख
खिड़की कैसे बंद करूँ?
तोड़ दिया गिलास
बोतल कैसे तोडूँ?
काट दी जीभ
आवाज़ कैसे काटूँ?
खाली किया जाम
सागर कैसे पीऊँ?
बीवी को मना लिया
बच्चे को कैसे मनाऊँ?
बच्चे को मना लिया
बीवी को कैसे मनाऊँ?
जला दी किताब
कविता कैसे जलाऊं?
तब ख़लल दिमाग का है दोषी
दिमाग में घूमता इक सर्प
कुंडली मारे लपेटता है मगज़
स्पष्ट को करता धुंधला
धुंधले को करता और धुंधला
फिल्टर से छाना पानी
आत्मा कैसे छानूं?
साबुन से धोए हाथ
लहू कैसे धोऊँ?
डस्टर से झाड़ा बिस्तर
गिल्ट कैसे झाडूं?
ढक लिया तन
कैसे ढकूँ मन?
बुझा दी बत्ती
डर कैसे बुझाऊं?
पानी से साफ़ किया चेहरा
अक्स कैसे साफ़ करूँ?
सुला दिया जिस्म
विचार कैसे सुलाऊं?
बंद की आँख
खिड़की कैसे बंद करूँ?
तोड़ दिया गिलास
बोतल कैसे तोडूँ?
काट दी जीभ
आवाज़ कैसे काटूँ?
खाली किया जाम
सागर कैसे पीऊँ?
बीवी को मना लिया
बच्चे को कैसे मनाऊँ?
बच्चे को मना लिया
बीवी को कैसे मनाऊँ?
जला दी किताब
कविता कैसे जलाऊं?
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