March 22, 2009

हाईवे नो वे-अश्वनी

भीगे फर्श पे फिसला करते थे बारिश में..
पर कभी गिरे नही..
सूखी सड़क पे गिर गिर के चल रहे है अब..
सड़क पे पड़े टिन के डब्बों को ठोकर से उड़ाया करते थे..
दूर तक खड़ खड़ की आवाज़ करते जाया करते थे डिब्बे..
आवारा कुत्ते अलसाए से गर्दन घुमा के देखा करते थे आवाज़ की दिशा में..
कोई उत्साही कुत्ता भोंक भी पड़ता था कभी कभी..
अब टिन के डिब्बे में बैठ के सड़क पे पड़े छोटे पत्थरों को टायर से कुचल के निकल जाते हैं..
सड़क एक कॉमन फैक्टर है...चाहे किसी भी शहर की हो..
मेरे शहर की सड़कें तंग गलियों सी थी..
गलियों गलियों होते हम किसी छोटी सड़क तक पहुँच जाते थे..
सड़क के किनारे किनारे चल के हम फिर से किसी गली में घुस जाते..
अब गली से निकालो तो हाईवे पे कदम पड़ते हैं..
हाईवे पे पैदल चलना मुश्किल है..
मैं आजकल ज्यादतर घर पे ही रहता हूँ..

March 18, 2009

शीशा आईने-सा-अश्वनी

मेरे आईने ने एक अजनबी देखा..मुझको आइना अजनबी लगा अपना..
मेरी आंखों को पहचान ना पायी मेरी आँखें..
हू-बहू अक्स ना बन पाया..जाने क्या हुआ..
दृष्टि धुंधली पड़ी..मेरे आईने पे भाप जम गई..
एक रोकिंग चेयर पे बैठ के मैंने कुछ झूलते सपने देखे..
मेरा कमरा आइनों से भरा था.
हर आईने में मेरा अक्स था.
जिबरिश में बातें करने लगे सब चेहरे मेरे..
कमरे के बाहर से गुजरते लोगों ने कुछ तीखी बहस सी आवाजें सुनी..
मेरे भीतर का कोलाहल..मेरे चेहरे ब्यान करने लगे..
आईने तड़क के टूटे ताड़ ताड़ ताड़..
आइनों के टूटे हुए कांच समेट के झाडू से कचरे के डिब्बे में डाल दिए काम वाली महरी ने..

March 2, 2009

सांड-अश्वनी

एक सांड दौड़ रहा है मेरे भीतर अपने नत्थुने फुलाए..
गुस्से में है..
चीर के चमड़ी आ रहा है बाहर..जैसे ले रहा हो नया जनम..
मेरा जिस्म कोख है उसकी..
और क्रोध है उसका स्थाई भाव..
छिन भिन्न करने को आतुर हर वो व्यवस्था जो व्यवस्थापित की है चंद स्थापित लोगों ने..
पटक के..पछाड़ के..दहाड़ के, चिघाड़ के..
तोड़ देगा वोह यह ग्लोब..
टुकड़े टुकड़े हो चुके मानचित्र से खोजेगा अपना लिए एक भू-खंड..नितांत अपना.
आआआआआआआआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्...
अट्टाहस होंगे..ठहाके लगेंगे..
पर आर्तनाद भी रहेगा जारी.
गुस्सा सांड को सांड बनाता है..गायें अक्सर शांत रहती हैं.