दूर कहीं बैंड पे बज रहा है नरेंदर चंचल का 'दो घूंट पिला दे साकिया ,बाकी मेरे पे रोड दे ' रोड दे यानी गिरा दे यानी वेस्टेज ऑफ़ मनी । एक पूरी बोतल में से दो घूँट पी के बाकी की कीमती शराब किसी मोटे भद्दे मामे या चाचे पे रोड दी जायेगी या फिर कोई कजिन इस बारिश के दो चार छींटे पा के ख़ुद को धन्य पायेगा । कुछ दीवाने अब्दुल्ले भी आयें हैं जो बेगानी शादी में मदमस्त नाच रहे हैं । सेहरे से लदा फदा दूल्हा सूरत ढकी होने की वजह से सहनीय है , काश कोई हवा इसके सेहरे को ना हटा पाये । एक तरह का मोटापा धारण किए मेक अप की कई परतों के नीचे दबी कुछ औरत नुमा प्रजाति के कुछ स्पेसिमन भी बे ढंगा डांस कर रहे हैं ।'काला सूरज' पिक्चर का यह गाना मरियल सी घोडी को विचलित कर रहा है जो दिल ही दिल में इस सूरज ग्रहण जैसे दुल्हे को अपनी दुल्लात्ति का स्वाद चखाना चाहती है । मैं बहुत दूर बैठा हूँ वहां से जहाँ ये हड़कंप मचा हुआ है ,लेकिन महाभारत के संजय सी दृष्टि प्राप्त हो जाती है अपने आप जब ऐसा कोई गाना कानो में पड़ता है..
मैं चंडीगढ़ में हूँ..
मैं चंडीगढ़ में हूँ..
hmmm..........yash...
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