आजमाए हुए आसमान से बारिश की उम्मीद रखना इक भुलावा था..
उम्मीद जब की बारिश से तो जम कर भीगे..
बारिश ने कहा
आसमान का कहा जब ना माना तो मिला मुझे तू
पानी थी पहले,तेरे जिस्म को छू के हुई बारिश..
कभी यूँ भी होता है की मिटटी को करती है जिस्म कोई बारिश..
और पानी को करता है बारिश कोई जिस्म...
यह बातें अनुभव से आती हैं..और अनुभव का आना कोई चमत्कार नही..बशर्ते आप खोल कर खड़े हो बाहें बारिश के इंतज़ार में..
hmmmmm..............yash....
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