करवट पे करवट
सुकून की तलाश में ॥
बिस्तर के सवाल
जिस्म लाजवाब
बगलें झांके, देखे इधर उधर ॥
अकेली करवट, जैसे एक मक्खी तड़पे जाने को बाहर शीशे के फ्रेम से ॥
एक किताब से शब्द वाष्पित हुए धूप में रखते हीपानी में रखने से वापिस लौट आए मगर कुछ शब्द हैं मिसिंग ॥
किताब से कुछ शब्द चुरा के हवाओं ने एक ख़त लिखा
एक कश्ती बना के ख़त की बादलों पे चला दी ॥
मक्खी अब भी तड़प रही है ...... करवटें जारी हैं
सुकून की तलाश में ॥
बिस्तर के सवाल
जिस्म लाजवाब
बगलें झांके, देखे इधर उधर ॥
अकेली करवट, जैसे एक मक्खी तड़पे जाने को बाहर शीशे के फ्रेम से ॥
एक किताब से शब्द वाष्पित हुए धूप में रखते हीपानी में रखने से वापिस लौट आए मगर कुछ शब्द हैं मिसिंग ॥
किताब से कुछ शब्द चुरा के हवाओं ने एक ख़त लिखा
एक कश्ती बना के ख़त की बादलों पे चला दी ॥
मक्खी अब भी तड़प रही है ...... करवटें जारी हैं
thik hai,ab band ho sakti hai. narayan narayan
ReplyDeleteवाह क्या अन्दाज है आगाज़ का-जगत पर आपका स्वागत श्यामसखा श्याम
ReplyDeleteमगर कुछ शब्द हैं मिसिंग....
ReplyDeletesabka shukriyaa..koshish jaari rahegi.
ReplyDeletekya baaat...........yash.....
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