February 18, 2009

आहा आनंद-अश्वनी

मुझे लगता था की मैं खुशी मिलने पे बहुत ज्यादा खुश नही होता..
और ना दुःख पाने पे बहुत अधिक दुखी...
मेरे जीवन का भाव सम है..ऐसा लगता रहा अब तक मुझे॥
पर कुछ खुशियाँ ऐसी मिलीं जो हर्षित कर गयीं कोना कोना॥
दुःख भी महसूस होने लगा भीतर तक॥
कुछ बदल रहा है मेरे साथ..मुझे दिखता रहता है बदलाव
सम हो रहा है असम, विषम ...अनुकूल बने प्रतिकूल।
जो भाव था बरसों से मेरे भीतर और अपना सा लगने लगा था क्योंकि बहुत समय से साथ था॥
वो पराया सा हुआ बहुत जल्दी जल्दी में॥
मज़ा आ गया..वाह

3 comments:

  1. Baat vahi hai. Kisi ek sabhyata mein kisi ne kabhi tamatar na to dekha tha,na khaya tha...Phir ek baar vo aa kar Punjab ke kisi dhaabe mein daal tadka kha gaya aur yun bola-
    Aha tamatar bada mazedaar...thank you.

    ReplyDelete
  2. Chha gaye guru.

    Oscar ka order de diya hai.

    ReplyDelete
  3. bahut achhe....yash...

    ReplyDelete