February 18, 2009

जब तक तू ना आएगी-अश्वनी

घर में खाने को बहुत कुछ है खाने जैसा
पीने को मनपसंद पेय और सोने को नरम आरामदायक बिस्तर
पर भूख ही काफी नही कुछ खाने के लिए
प्यास से बढ़ के भी कुछ चाहिए पीने के लिए
नींद से बढ़ के कुछ होना होगा सोने के लिए
मेरी भूख , मेरी प्यास , मेरे आंखों की नींद॥
इक तेरा साथ होगा जब साथ मेरे...
तो साथ साथ चली आएँगी नींद भूख और प्यास॥

7 comments:

  1. प्यार की ठंडक हो आस-पास तो भूख भी ख़ूब लगती है, नींद भी माशाअल्लाह आती है, और प्यास है कि बुझने का नाम नहीं लेती। बहुत अच्छा लिख रहे हो, भाई। जज़्बातों को शब्दों में पिरोने का काम यूं कर रहे हो जैसे कोई रचनाकार मन में बसी मूरत को छैनी-हथौड़ा लेकर गढ़ रहा हो।

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  2. तुम तो जानते ही हो की कौन है वो, बस वो यह समझ ले की उसका असर हो रहा है और हो रहा है क्या..हो चुका है..

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  3. Apki kavitaon se mehsoos hua ki main use jaankar bhi pehchaan na payi.. Apke andaaz kuch alag hi hai, bhavnao ka khel bahut sundar hai..

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  4. shukriyaa koel..koshish karte rahiye..jald he aap pehchaan paayengi unhe..aur agar nahi pehchaan paayi toh milva hee denge kabhi na kabhi..bahut khaas hain woh..

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  5. this is very nice poem which i liked a lot n plz may i know to who is tht spl person to whom ths poem is dedicated

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  6. shukriya pooja..woh hai bahut hee khaas..jaldi hee sabko pata lag jaayega

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  7. bahut khoob....wah...credit goes to...m..d...v.......gud change...change for gud...yash...

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