June 5, 2010

आत्मबोध-अश्वनी

जीना झीना झीना....

मरना सघन सघन......

करना कुछ छ्लावा छ्लावा......

ना करना मगन मगन.....

पाना है इक प्यास....

ना पाना लगन लगन...

June 2, 2010

क्या-अश्वनी

क्या लिखें .......

क्या सुनाए.......

क्या करें बयां.........

इतने दिन बीते कह्ते कह्ते....

अब भी कुछ बाकी रहा है क्या.....

उदासी-अश्वनी

जब दिल उदास हो तो उदासी का मज़ा लो....

जब खुश हो दिल तो उदासी खोजने निकल पढ़ो...

उदासी स्थाई भाव बन जाए तो ऐसे विचार अक्सर आते जाते रह्ते हैं....

आप क्या कते हैं...

डगमग इरादे-अश्वनी

कैसे करें वादा .......

जब डगमग हो इरादा ....

जब डगमग हो इरादा तो कैसे करें वादा...

गुनाह अभी चंद कर लेने दो मुझको .....

कर लेंगे हिसाब भी इक दिन....

कम किये या ज़्यादा....

हालाते हाज़रा-अश्वनी

नींद बहुत आती है...
नींद नहीं आती है....
बात होंठों पे आती है...
बात दिल में रह जाती है...
समझ जाता हूं हर बात कभी....
कभी समझ ही नहीं आती है.....
याद, प्यास, तड़प, जुदाई, प्यार
ये सब सिर्फ शब्द हैं कभी.....
कभी-कभार शब्दों के भीतर बसी रूह नज़र आती है..