आके कहती है अब वो वक्त बे-वक्त कि कविता लिखो ना
तुम जब लिखते हो तो मैं पूरी होती जाती हूँ..
पर नही जानती वो की काफ़ी दिनों से मैंने कुछ नही लिखा॥
लिखना कुछ होता ही नही असल में॥
यह तो बस है थोड़ा सा यूँही , उसके साथ थोड़ा और वक्त बिताने का बहाना॥
वो बन रही है मेरे जीने का बहाना धीरे धीरे..
तुम जब लिखते हो तो मैं पूरी होती जाती हूँ..
पर नही जानती वो की काफ़ी दिनों से मैंने कुछ नही लिखा॥
लिखना कुछ होता ही नही असल में॥
यह तो बस है थोड़ा सा यूँही , उसके साथ थोड़ा और वक्त बिताने का बहाना॥
वो बन रही है मेरे जीने का बहाना धीरे धीरे..
hmmmm........yash....
ReplyDeleteAshwaniji
ReplyDeletekavita rupi baatchit padi acchi lagi, laga koi humsay baatchit kar raha hai kavita k rup may. na meter na muktachand, wah! kavita k saath le gaye tasvir kavita purn karti hai. ummid hai mulakat hoti rahegi