May 31, 2009

माधवी मेरी मीरा मेरी-अश्वनी

किसी एक तारीख के इंतज़ार में रोज़ रोज़ तारीखें देखना भी एक अजीब सा सुख देता है॥
हर गुज़रती तारीख के साथ मेरा इंतज़ार कम होने की बजाए बढ़ रहा है।
इतनी आकुल व्याकुल अव्यवस्थित चंचल बेचैन दशा मन की कभी ना थी
बहुत इंतज़ार के बाद यह इंतज़ार के दिन आए
साल भर के सारे मौसम देख लेता हूँ कुछ पल में अगर चाहूँ तो आजकल
कोई एक इंसान कैसे आपके रात दिन सुबह शाम गर्मी सर्दी प्रभावित करने लगता है
यह देखना महसूस करना कोतुहल का विषय है मेरे लिए
मैं ज्यादातर आश्चर्यचकित ही रहता हूँ आजकल
मेरे जीवन में इन्दरधनुष लाने वाली ,मेरी सोच को हर्षाने वाली वो
माधवी
मेरी पत्नी बनेगी २६ जून को
और मैं उसका पति
वाह ज़िन्दगी ........

May 21, 2009

पिघला है कुछ भीतर-अश्वनी

भूरे शीशे से छन कर आती दोपहर शाम सी लगती है
और घर के अन्दर की शाम उसी शीशे से बाहर जा के दोपहर हो जाती है
अब शीशे मौसम को बदल रहे हैं
मेरे दिल का मौसम किसी के ख्याल आने पे या न आने पे बदल जाता है
मेरे दिल का शीशा पिघला दिया किसी ने
मैं जल्द ही अपने घर का शीशा भी तोड़ दूँगा
या कोई आ कर पिघला देगी उस शीशे को भी अपनी एक छुअन से
ऐसा नही की उसके छूने से सिर्फ़ शीशा पिघलता है
मेरा अंहकार भी गल जाता है उसके छूते ही

May 19, 2009

उसका नाम-अश्वनी

मेरे भीतर एक समंदर है जो लहर लहर स्पंदित होता है तेरी हर छुअन से ,
तेरी छुअन के निशान दिखाई देते हैं दिल की हर परत पे
दिल के भीतर की सबसे भीतरी परत में एक मोती है
मेरा दिल एक सीप है
धीरे से सीप खोल वो मोती मैंने मुँह में रख लिया
कुछ पल को लगा चाँदनी घुल गई मेरे मुख में

यह अहसास जो चल के आया है तेरे पास से मेरी ओर
अनोखा है
हर शब्द में तेरा अक्स छुपा है मेरे
शब्द एक नवेली दुल्हन से किलकिल करते हैं घूंघट के तले
गर्म साँसों से मेरी घूंघट तेरा हिल रहा है थोड़ा थोड़ा
कुछ शब्द चहक चहक फिसले इधर उधर घूंघट से
मैंने एक एक शब्द उठा के अपनी आँखों से रखा अपने होंठो पे
मेरे होंठों पे एक नाम उतर आया
माधवी......