मेरी आँखें चंचल थी कभी , अब नही रहीं
आजकल मैं देखता हूँ हर तरफ़ टकटकी लगा के
खो जाता हूँ बहुत जल्दी और फिर मुझे जल्दी ही नही रहती किसी बात की
ऐसा लगता है की मैं सोच रहा हूँ बहुत कुछ , मगर मेरे हर ख्याल , हर सोच पे कब्ज़ा किसी और का है
कभी कभी बड़ा भला लगता है जब दिन भर की सोच का हासिल हो शून्य , एक खला ,एक इनफिनिटी
ऐसी स्थिति दुर्लभ है और दुर्लभता भली लगती है उस से जो होता आ रहा हो रोज़ रोज़
मुझे जीने दो ऐसे ही ॥
आजकल मैं देखता हूँ हर तरफ़ टकटकी लगा के
खो जाता हूँ बहुत जल्दी और फिर मुझे जल्दी ही नही रहती किसी बात की
ऐसा लगता है की मैं सोच रहा हूँ बहुत कुछ , मगर मेरे हर ख्याल , हर सोच पे कब्ज़ा किसी और का है
कभी कभी बड़ा भला लगता है जब दिन भर की सोच का हासिल हो शून्य , एक खला ,एक इनफिनिटी
ऐसी स्थिति दुर्लभ है और दुर्लभता भली लगती है उस से जो होता आ रहा हो रोज़ रोज़
मुझे जीने दो ऐसे ही ॥
hmmmm....hmmmm........yash....
ReplyDelete