February 17, 2009

सुबह जिसका देखता हूँ चेहरा-अश्वनी

जब रातों को सोया तो तेरा चेहरा साथ था ।
सुबह फिर तेरे चेहरे के चाँद ने मेरे उजाले में रंग भरेतू इस तरह से मेरे हर वक्त में हर वक्त नज़र आने लगी।
जैसे बच्चे
संग रहता है बचपन हर वक्त, जैसे छप्पन संग रहता है पचपन हर वक्त।
जैसे हर आँख रखती है थोड़ा पानी हर वक्त। जैसे कहानी इक रखती है हर जवानी हर वक्त।
जैसे हर तारे में होती है टिम टिम हर वक्त, जैसे हर बारिश में होती है रिम झिम हर वक्त।
जैसे धूप संग लाती है गर्मी हर वक्त , जैसे समझ के साथ आती है नरमी हर वक्त।
माधवी तू मेरी, मीरा भी तू । मेरी उंगली तू , अंगूठी मेरी तू , अंगूठी का हीरा भी तू ।
मेरा घर भी तू ,घर का मेहमान भी तू , मेज़बान भी तू ,मेरे दिल-घर की पहचान भी तू ।
मेरा अक्स तू ,आइना मेरा तू ,हर लम्हा हर वक्त तू , तू ही तू हर जगह हर
सू ।
अब कभी जाना नही कभी ।
अक्स रूठा तो आइना टूट जायेगा ।
दिल-घर की अगर पहचान गई तो इस घर से मेरा दिल ही छूट जायेगा ।

4 comments:

  1. Kya baat hai guru!! Chha gaye tum. Hindi bhasha hasha pe aap k adhikaar ko dekh kar mann prasann ho gaya.

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  2. Beautiful !!
    Anand aa gaya, ab jayega nahi :)

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  3. shukriyaa puneet..par baarish jee..aapse aur chaahiye abhi..thode se nahi chalega..

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  4. kamaaaaaal.........yash....

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