February 9, 2009

तू और मैं-अश्वनी

इस शहर में तू इक हमसफ़र है मेरी....
तेरी बाहों में मेरा मौहल्ला है..
तेरी जुल्फों में उसकी गलियाँ हैं..
तेरे आंखों में मिलता है पता मेरे घर का..
उंगलियाँ तेरी खोलती है दरवाजा मेरे कमरे का..
मेरे बिस्तर पे लेटता है पूरा जिस्म तेरा..
तेरे आगोश में मदहोश मेरी दुनिया है.

3 comments:

  1. बेहतरीन.. ऐसे ही लिखता रहा तो तेरा ब्लॉग पढ़ने की आदत हो जाएगी.. और वो कहते हैं ना कि आदत भी मोहब्बत का ही एक रूप होती है....:-)

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  2. shukriyaa...devnagari mein likhna chaahta hoon..par maine bahut explore kiyaa..hindi font hee nahi hai meri window mein..anyway..tu agar saath dene kaa vaada kare..main yunhi mast nagmein sunaata rahoon.

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  3. waaaah....yash...

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