January 28, 2012

जंगली- अश्वनी

मुझे जंगल देखे कई दिन हो गए
मैंने कई दिन से अपने भीतर नहीं झाँका
काई जम गयी है वर्षावन में
मेरे मन में...

एक वन-नदी तोड़ चुकी है सांस
सूखी पपड़ी सी पड़ी है मुर्दा
मछलियों के कंकाल मुकुट से सजे हैं पपड़ी पर
मेरी धमनियों का रक्त जम के हो चुका है काला
मेरी शिरायें सूखे नूडल सी लटक रही हैं
त्वचा से बाहर झाँक रही हैं नसें

कांटे उगे हैं जगह-जगह जंगल में
छील देते हैं जो
लील लेते हैं जो
मेरी जीभ रेगमार हो गयी है
जख्म देती है
घायल कर देती है
कभी तुझे, कभी मुझे

सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता इस अरण्य में
इतना घना है ये
मेरी आत्मा को कोई छू नहीं पाया अभी तक

विषैले-वनैले जीव-जंतु भरे पड़े हैं इस कानन में
छेड़ते ही काट लेते हैं
मेरी हस्तरेखाओं में वध की पुष्टि हुई है

जंगल में आग लग गयी एक दिन अचानक
सारे वन-कानन पे कालिख पुत गई
अरण्य नगण्य हो गया
उस रात मेरे हाथ से कुछ लकीरें गायब हो गईं
मन हर्षित और वाणी मधुर हुई मेरी
मुझे कोई लगने लगा बेहद प्यारा
मैं उसी के साथ जंगल-सफ़ारी पे जाने वाला हूँ।

9 comments:

  1. again an innovative subject...
    hats off to u...
    english words जाने कैसे ,बड़ी अच्छी तरह घोल देते हैं ठोस हिंदी कविता में..

    बहुत खूब..

    ReplyDelete
    Replies
    1. shukriya..kai jagah english ke shabd itne sateek baitthte hain ki wo khud-b-khud neri kavita ka hissa ban jaate hain..aur mera koi daava bhi nahi hai ki main shudh hindi mein hi likhoonga..mere liye bhaav zyada zaroori hain..bhaasha baad mein aati hai..

      Delete
  2. बहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति।

    ऋतुराज वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. shukriya Hareesh..aapko bhi basan panchami ki hardik badhaai..

      Delete
  3. bhai kamal hai kumaar saahab maza aa gaya

    ReplyDelete
    Replies
    1. pankaj saab..aapka swagat hai..aapko to pata hi hai ki aapke vichaar mere liye kitne maayne rakhte hain..yunhi hounsala badhaate rahein...emotional kar diya aapne comment karke..

      Delete
  4. लौटकर कुछ मिली रेखाओं का , ठहरी बूंद का ज़िक्र ज़रूर करेंगे ...

    ReplyDelete
  5. कांटे उगे हैं जगह-जगह जंगल में
    छील देते हैं जो
    लील लेते हैं जो
    मेरी जीभ रेगमार हो गयी है
    जख्म देती है
    घायल कर देती है
    कभी तुझे, कभी मुझे
    ...Jangal kya nahi dete insanon ko, lekin insan use ahsan ke badle use noochne-khasotne se kahan baaj aata hai...
    bahut sundar sarathak sandesh bhare rachna..
    bahut achha laga padhkar..dhanyavad

    ReplyDelete