मैं सुख की कविता लिखना चाहता हूँ..
आज तक नहीं पढ़ी कोई ऐसी कविता जिसमें सुख ही सुख हो..
हर कोई हो प्रसन्न..ख़ुशी से शुरू हो और ख़ुशी पे ख़तम हो जाए..
तेरे नाम से शुरू..तेरे नाम पे ख़तम टाइप्स...
पर जब ख़ुशी-ख़ुशी लिखने बैठा ख़ुशी और सुख पर कविता..
तो कविता अदृश्य हो गयी और एक गाना मेरे सर पे नाचने लगा..
मेरे पन्नों पे अब एक गीत लिखा है..
मैं अब भी एक सुख की कविता लिखना और पढ़ना चाहता हूँ..
ख़ुशी से शुरू..ख़ुशी पे ख़तम टाइप्स..
आज तक नहीं पढ़ी कोई ऐसी कविता जिसमें सुख ही सुख हो..
हर कोई हो प्रसन्न..ख़ुशी से शुरू हो और ख़ुशी पे ख़तम हो जाए..
तेरे नाम से शुरू..तेरे नाम पे ख़तम टाइप्स...
पर जब ख़ुशी-ख़ुशी लिखने बैठा ख़ुशी और सुख पर कविता..
तो कविता अदृश्य हो गयी और एक गाना मेरे सर पे नाचने लगा..
मेरे पन्नों पे अब एक गीत लिखा है..
मैं अब भी एक सुख की कविता लिखना और पढ़ना चाहता हूँ..
ख़ुशी से शुरू..ख़ुशी पे ख़तम टाइप्स..
मेरे पन्नों पे अब एक गीत लिखा है..
ReplyDeleteमैं अब भी एक सुख की कविता लिखना और पढ़ना चाहता हूँ..
ख़ुशी से शुरू..ख़ुशी पे ख़तम टाइप्स..पर यह इतना आसान तो नहीं
aasaan nahi hai..sahi kaha aapne..
Deleteexcellent.............
ReplyDeleteकाश ऐसी कविता आप ही लिख डालें..
बेहतरीन ख़याल..
वाह बहुत खूब .....ऐसी सोच ना पढ़ी ना देखी
ReplyDeleteशुक्रिया विद्या...शुक्रिया अनु...कवि क्या चाहे?२-४ कान..५-६ जोड़ी आँखें..जो उसको सुन सके..देख पाएं..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
shukriya..
Deleteकाश होती ऐसी कविता...
ReplyDeleteउदास है मन अभी तो ऐसी किसी सम्भावना से ही खुश हो गया...
आभार आपका!
aabhar aapka bhi..
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