January 14, 2012

सुख की कविता-अश्वनी

मैं सुख की कविता लिखना चाहता हूँ..
आज तक नहीं पढ़ी कोई ऐसी कविता जिसमें सुख ही सुख हो..
हर कोई हो प्रसन्न..ख़ुशी से शुरू हो और ख़ुशी पे ख़तम हो जाए..
तेरे नाम से शुरू..तेरे नाम पे ख़तम टाइप्स...
पर जब ख़ुशी-ख़ुशी लिखने बैठा ख़ुशी और सुख पर कविता..
तो कविता अदृश्य हो गयी और एक गाना मेरे सर पे नाचने लगा..
मेरे पन्नों पे अब एक गीत लिखा है..
मैं अब भी एक सुख की कविता लिखना और पढ़ना चाहता हूँ..
ख़ुशी से शुरू..ख़ुशी पे ख़तम टाइप्स..

9 comments:

  1. मेरे पन्नों पे अब एक गीत लिखा है..
    मैं अब भी एक सुख की कविता लिखना और पढ़ना चाहता हूँ..
    ख़ुशी से शुरू..ख़ुशी पे ख़तम टाइप्स..पर यह इतना आसान तो नहीं

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  2. excellent.............

    काश ऐसी कविता आप ही लिख डालें..
    बेहतरीन ख़याल..

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  3. वाह बहुत खूब .....ऐसी सोच ना पढ़ी ना देखी

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  4. शुक्रिया विद्या...शुक्रिया अनु...कवि क्या चाहे?२-४ कान..५-६ जोड़ी आँखें..जो उसको सुन सके..देख पाएं..

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  5. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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  6. काश होती ऐसी कविता...
    उदास है मन अभी तो ऐसी किसी सम्भावना से ही खुश हो गया...
    आभार आपका!

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