तो मैं आज एक बहुत बड़ा कहानीकार..उपन्यासकार,कवि होता..
सपनों में इतनी कहानियाँ..इतनी कवितायें रचता हूँ कि सपने में मुस्कुराता रहता हूँ..
कभी-कभार कोई कहानी आ के रुला भी जाती है..कोई हंसा जाती है..कोई डरा जाती है..
पर कहीं न कहीं मुझे पता चल जाता है कि यह एक सपना है..
तो मैं मुस्कुराने लगता हूँ..
क्योंकि मुझे पता होता है कि मैं रच रहा हूँ कोई बड़ा साहित्य..
बस केवल एक रहस्य मैं नहीं जान पाता सपने का..
कि जो मैं रच रहा हूँ..यह सब एक जादुई स्याही से लिखा जा रहा है...
जो स्याही सुबह होते ही गायब हो जायेगी मेरी याद के पन्नों से..
ज्यादा सोचते रहने का नतीजा है यह सारा..
दिन भर सोचो और रात में सपने देखो..
पेट भर सपनों से भरी नींद साउंड स्लीप नहीं होती..
मेरे सपने मेरी नींद खा गए हैं पिछले कुछ सालों से..
मैं साहित्यकार तो नहीं ही बना..
हाँ..अनिद्रा का शिकार हो गया हूँ..
अब केवल एक तमन्ना है..
या तो सपने रिकॉर्ड होने लगें..
या सपने समाप्त हो जाएँ..
सपनों में इतनी कहानियाँ..इतनी कवितायें रचता हूँ कि सपने में मुस्कुराता रहता हूँ..
कभी-कभार कोई कहानी आ के रुला भी जाती है..कोई हंसा जाती है..कोई डरा जाती है..
पर कहीं न कहीं मुझे पता चल जाता है कि यह एक सपना है..
तो मैं मुस्कुराने लगता हूँ..
क्योंकि मुझे पता होता है कि मैं रच रहा हूँ कोई बड़ा साहित्य..
बस केवल एक रहस्य मैं नहीं जान पाता सपने का..
कि जो मैं रच रहा हूँ..यह सब एक जादुई स्याही से लिखा जा रहा है...
जो स्याही सुबह होते ही गायब हो जायेगी मेरी याद के पन्नों से..
ज्यादा सोचते रहने का नतीजा है यह सारा..
दिन भर सोचो और रात में सपने देखो..
पेट भर सपनों से भरी नींद साउंड स्लीप नहीं होती..
मेरे सपने मेरी नींद खा गए हैं पिछले कुछ सालों से..
मैं साहित्यकार तो नहीं ही बना..
हाँ..अनिद्रा का शिकार हो गया हूँ..
अब केवल एक तमन्ना है..
या तो सपने रिकॉर्ड होने लगें..
या सपने समाप्त हो जाएँ..
या मैं सोचना बंद कर दूं..
या....
या तो सपने रिकॉर्ड होने लगें..या सपने समाप्त हो जाएँ..
ReplyDeleteकुछ कुछ बिलकुल मेरे मन की बात!
सपनो से भरे नैना ........नींद हैं ना चैना..वाह बहुत खूब
ReplyDeleteसही कहा ...हर सोचने वाला इसी बीमारी का शिकार हैं
वही बेचैनी ..शब्द और विचार बन कर लेखनी बन जाती है
उसी लेखनी को आप और हम यहाँ पढते हैं
ऐसे ही लिखते रहे ...राहें खुदबखुद आकार मिलने लगेंगी
बहुत खूब... दिनभर के सोच-विचार की गुत्थियां सपनों में ही खुलती है.. लेकिन नींद खुलते ही सबकुछ शीशे की भांति साफ होता है। बस यही पीड़ा है कि सपने सुबह तक साथ नहीं देते। और फिर शुरू हो जाती है अगली नींद के सपनों के बीज डलने की प्रक्रिया....
ReplyDeleteरिकॉर्ड तो होते ही हैं .... सोचने की भी रेकॉर्डिंग , सपने की रेकॉर्डिंग आँखों में
ReplyDeleteअच्छा...????
ReplyDeleteरीप्ले नहीं होते??
मुझे तो कभी कभी सपना शाम को याद आ जाता है यक-ब-यक..
कोशिश करिये...कहीं ना कहीं होंगे..quarentine में... .
nicely written...
अनुपमा-आपके मन की बात की लगी आपको मेरे मन की कही..तो मन प्रसन्न हो गया..
ReplyDeleteअनु-शुक्रिया..आप यूँही साथ देने का वादा करो..मैं यूँही सपने दिखता रहूँ..लिखता रहूँगा अगर सराहना मिलती रहेगी तो..और नहीं मिलेगी तो फिर लिखूंगा कुछ उदास कवितायें..
अजय-तुम मेरे भाई हो..बड़े भाई..बचपन में हमारे तुम्हारे सपने लगभग एक से होते थे..जिसमें हम वो खिलौना पा जाते थे जो डैडी यथार्थ में नहीं ला पाते थे...अभी ज़िन्दगी के इस मोड़ पे देखते हैं कि हमारे तुम्हारे सपने क्या रंग दिखाते हैं..
रश्मि-ह्म्म्म..सोचने पे मजबूर किया आपने..
विद्या-आपको क्या लगता है कि कोशिश नहीं हुई??आप खुशकिस्मत हैं जो याद रख लेती हैं..मेरी रियल लाइफ में रिसाइकल बिन नहीं है..जहां आप सुबह उठ के अपना सपना रीस्टोर कर लें..
brilliant composition
ReplyDeletethanks sanjay..
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ReplyDeleteबेहतर होगा यदि आप अपने सपनों को शब्द देकर कागज़ पर उतार दें :)
ReplyDeletepallavi ji..koshish yahi rehti hai..par itna aasaan nahi..
Deleteये कविता गर थोडीसी एडिट हो तो...? सुझाव है-सोचना.इस कविता को पढते हुए कृश्नचंदर कि कहानी-सब से बड़ी किताब- याद आ गयी.-अच्छी कविता.धन्यवाद.
ReplyDeleteshukriya raju ji...jo edit karne laayak hai..usko aap apni nazaron se kaat ke khud hi fenk do..mujhe thodi mushkil hoti hai editing mein..kavita ko main objectively kam hi dekh paata hoon..balki..mujhe to har baar lagta hai ki kitna kuchh reh gaya ankaha..haan..agar yeh film hoti to main edit zaroor kar paata..wahaan mera dimaag chalta hai..yahaan mera dil..
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