इतनी कशमकश..इतनी कसमसाहट..इतनी बेचैनी..इतना शोर..इतनी व्याकुलता..
क्यूँ कोई चैन सुकून आराम ख़ामोशी का दरवाज़ा नहीं खुलता?
क्यूँ धुकधुकी सी सीने में..क्यूँ रोज़ एक मरण रोज़ के जीने में?
क्यूँ चाह इतनी बढ़ी कि खुद छोटे नज़र आने लगे हम?
क्यूँ प्यास इतनी ज़्यादा कि सागर भी लगे कम?
क्यूँ पैर इतने बड़े कि हर चादर लगे छोटी?
क्यूँ स्वाद इतना सरचढ़ा कि बेस्वाद लगे रोटी?
क्यूँ सीढ़ियों के चढ़ने में ज़िन्दगी उतरे जा रही कब्र में?
क्यूँ बेसब्री सबब बनी जीने का..क्यूँ मज़ा आता नहीं सब्र में?
क्यूँ प्रतिस्पर्धा घुल गयी खून में?
क्यूँ सर घूमता रहता व्यर्थ के जूनून में?
सबके अपने अपने सवाल हैं..सबके अपने अपने क्यूँ हैं..
मेरे भी बहुत से क्यूँ बचे हैं बाकी..
पर अभी इतने सारे क्यूँ से भरे सवाल पूछ कर मैं उदास हो गया हूँ..
मैं चला सोने..
क्यूँ कोई चैन सुकून आराम ख़ामोशी का दरवाज़ा नहीं खुलता?
क्यूँ धुकधुकी सी सीने में..क्यूँ रोज़ एक मरण रोज़ के जीने में?
क्यूँ चाह इतनी बढ़ी कि खुद छोटे नज़र आने लगे हम?
क्यूँ प्यास इतनी ज़्यादा कि सागर भी लगे कम?
क्यूँ पैर इतने बड़े कि हर चादर लगे छोटी?
क्यूँ स्वाद इतना सरचढ़ा कि बेस्वाद लगे रोटी?
क्यूँ सीढ़ियों के चढ़ने में ज़िन्दगी उतरे जा रही कब्र में?
क्यूँ बेसब्री सबब बनी जीने का..क्यूँ मज़ा आता नहीं सब्र में?
क्यूँ प्रतिस्पर्धा घुल गयी खून में?
क्यूँ सर घूमता रहता व्यर्थ के जूनून में?
सबके अपने अपने सवाल हैं..सबके अपने अपने क्यूँ हैं..
मेरे भी बहुत से क्यूँ बचे हैं बाकी..
पर अभी इतने सारे क्यूँ से भरे सवाल पूछ कर मैं उदास हो गया हूँ..
मैं चला सोने..
सवाल ही सवाल .... थकान बढ़ती जा रही है , जवाब के सारे मुंह सिले हुए हैं
ReplyDeletesahi baat rashmi ji..
Deleteइतने सवाल क्यूँ?????
ReplyDelete....जवाब उलझन बढ़ा ही देंगे :-)
hmmmm..
Deleteक्यूँ रोज़ एक मरण रोज़ के जीने में?
ReplyDeleteइसे कहते हैं सार्थक प्रश्न...
चलिए इस प्रश्न का उत्तर बनते हैं हम!
आप बेहद सुन्दर लिखते हैं!
लिखते रहें...
शुभकामनाएं!
shukriya..yunhi likhta rahoonga..
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