January 27, 2012

भूत-अश्वनी

हर तरह की यादों का एक वक़्त और दिन होता है..
आज मैं फुर्सत में हूँ
और मुझे अपने बचपन की
पुराने दोस्तों की
छूट गए छोटे से कस्बे की
उस छोटे से कस्बे में हमारे बड़े से घर की
यादें घेरे हुए हैं...

जब मैं भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में होता हूँ 
तब इस तरह की नॉस्टैल्जिक टाइप 
यादें मेरा साथ छोड़ देती हैं..
तब मुझे याद रहता है 
मिल्खा सिंह से भी तेज़ भागता समय
और सुरसा-सा मुंह फाड़े बचा ढेर काम...
भविष्य बेहतर करने में वर्तमान बर्बाद करना 
मैं कभी नहीं भूलता उस समयकाल में...

उस वक़्त मेरा मशीनीकरण हो चुका होता है...
मेरे पूरे जिस्म पे नट-बोल्ट उगे जाते हैं
और मेरा बॉस पेचकस हाथ में ले के 
कुटिल मुस्कान लुटाता है..
ज़रा सा भी ढ़ीला पड़ने पे 
वो मेरे पेच कस देता है..

उस वक़्त मुझे याद कराने पे भी याद नहीं आता कि
मैं कभी बच्चा भी था..
और मैं कहता पाया जाता हूँ 
कि मेरे कभी कोई दोस्त ही नहीं रहे

उस वक़्त मुझे यकीन होता है 
कि मैं जन्म से ही इस महानगर में हूँ..
और यह दड़बेनुमा घर ही मेरा घर है सदा से..

उस वक़्त अगर मुझे दुनिया के मानचित्र से मिटा दिया जाए
मतलब मेरी हत्या हो जाए 
या फिर स्वाभाविक मौत
तो
किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा..
सिर्फ़ मेरे बॉस को थोडा दुःख होगा 
समय की हानि होने का..
उसे एक दिन का अवकाश रखना पड़ेगा मजबूरी में..

किन्तु एक दिन बाद
कोई छोटे कस्बे के बड़े घर से आया 
लड़का
जिसके कई दोस्त हैं
और जो अभी भी बचपन, कस्बे
और दोस्तों को याद करता है...
मेरी जगह ले लेगा..

फिर मेरा बॉस उसको बताएगा
की उससे पहले उसकी जगह काम करने वाला
हमेशा खोया सा रहता था कुछ यादों में
इसलिए वो नहीं कर पाया
अपना काम सुचारू रूप से..
अगर ऊपरवाला उसको निकाल के न ले जाता
तो वो खुद ही उसे निकालने वाला था नौकरी से..
इसलिए बेटा...याद रखना..
यादों में मत खोना यहाँ..
दिल लगा के, नज़र झुका के काम करना..
उसके बाद तुम्हारा भविष्य सुरक्षित है..

जिस वक़्त मेरा बॉस 
मेरे जैसे एक छोटे कस्बे से आये 
नए लड़के को ज्ञान पिला रहा होगा..
उस वक़्त मैं भूत बनके 
अपने छोटे से कस्बे के बड़े से ख़ाली पड़े घर में 
अपने पुराने दोस्तों को याद करके भटक रहा होऊंगा...

6 comments:

  1. ज़रूरतों ने मुझे रेस में जीतनेवाला घोड़ा बना दिया है
    कोई समझता ही नहीं - मेरी आँखें मेरा बीता कल ढूंढती हैं
    जबकि सब इसी खोज में हैं
    बचपन का घर
    अपनों की खिलखिलाहट ( बिना परेशानी के )
    दोस्तों का अनमोल साथ .......
    पर कौन सोचेगा
    सब तो रेस के घोड़े बने हैं !

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    1. bahut khoob rashmi ji..shukriya..mujhe iss roop mein mili tippanniya bahut achhi lagti hain..

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  2. सच है की आज सभी नट बोल्ट वाले..रोबोट बने हुए हैं..
    मगर जिंदगी का संतुलन हमारे हाथ है...
    अपने भीतर का बच्चा..जो ढेर दोस्तों के साथ छिपाछिपी खेलता है..हमे सदा जीवित रखना चाहिए...
    भूत बन कर नहीं स-शरीर जीवन का आनंद उठायें..

    ...good writing!!!

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    1. ये कोमेंट है रिप्लाय नहीं.पर मुझे कोमेंट का टेग नहीं मिला,रिप्लाय का ही मिला सो ये ही सही.
      अश्विन.
      आप अच्छा सोचते है,जीते है और लिखते है....इस कविता ने निराश किया.आप से कई ज्यादा बहेतर लिखावट कि उम्मीद है.प्लीज़...ये टिका नहीं हसरत है.----राजू.

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    2. raju ji..apni umeed thodi kam kar lijiye mujhse..main umeedon par kam hi khara utar paaya hoon jeevan mein..

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