February 25, 2012

चाहत - अश्वनी

मिटना नसीब था
तुझपे मर मिटे

खुद को पाना था

तुझमें खो गए

इज़हारे मोहब्बत था

ज़ुबान खामोश रही

तू साया बन साथ थी

मैं अंधेरों में था
साया दिखा नहीं
महसूस हुआ

जब तूने बहुत देर थामे रखा हाथ

लकीरें बदलने लगीं
'अकेलेपन' की जगह
तेरा नाम उभर आया

तूने इतने समर्पण से मुझे चाहा

मुझे मोहब्बत पे यकीन होने लगा
तूने मुझे देखा 'उस' नज़र से
मुझे खुद पे यकीन होने लगा

जब तू आई जीवन में

मैंने एक बड़ा छाता खरीदा
अब से पहले एक छोटी छतरी बारिश के लिए थी

तेरे आने से

मैंने पहली बार जानी बहुत सी बातें
मैंने जाना कि
मैं खुद से ज़्यादा भी चाह सकता हूँ किसी को
खुद से ज़्यादा तुम पर भरोसा करता हूँ

तेरे आने से

बारिश,हवा,पहाड़,बादल,चाँद,घाटी,वादी,झरना,जंगल
जैसे शब्द
परिभाषित हुए

अब तुम अपना ज़्यादातर वक़्त मेरे संग बिताती हो

बंद आँखों से भी दिख जाती हो
आँखें खोलूँ
तब भी रहना सामने
हमेशा

5 comments:

  1. ज़रूर रहेगी...कोई ख्वाब थोड़ी है :-)

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  2. उनके आने से सब बदल जाता है :)

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  3. मिटना नसीब था
    तुझपे मर मिटे

    खुद को पाना था
    तुझमें खो गए

    इज़हारे मोहब्बत था
    ज़ुबान खामोश रही........
    अश्विनी, छा गए गुरु। बहुत बढिय़ा।

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  4. यार तुम तो बहुत बढ़िया लिखते हो ....आज फिर ये कविता पढ़ी....वाह.....!!

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