February 19, 2012

ग़ुलाम राजा- अश्वनी

देह मानचित्र सी
अपनी अपनी जगह घेरे अंग प्रत्यंग
स्वामी दिल
प्रहरी मस्तिष्क
शिराओं सी नदियाँ जोड़ती सबको परस्पर...

कोई आके तोड़ दे ये
व्यवस्था
अस्त व्यस्त कर दे मानचित्र
झुलसा दे देह
दमका दे देह
निखरा दे देह
सुला दे प्रहरी को
नदियों को डुबो दे पाताल में
और
स्वामी को बना ले अपना ग़ुलाम....

'उसकी' ग़ुलामी में दिल बल्लियों उछलता है
अहम् टूटता है तो वहम बिखर जाता है
हर दिल की कोई एक रानी
कोई एक राजा होता है..
दिल ग़ुलामी में हरदम जवान रहता है...

'स्वामी दिल' अकेलेपन का शिकार होता है
जल्दी बुढ़ा जाता है
अहम् वहम उसको झुकने नहीं देते
तनी अकड़ी गर्दन एक दिन भरभरा के ढह जाती है...

उम्र बीतने पे आई समझ, नासमझी है
जिनके पास अभी भी वक़्त बचा है
वो मेरे अनुभव से लाभ पाएं
दिल को किसी का ग़ुलाम बनाएं
इस बाज़ी में शह से ज़्यादा मज़ा मात में आता है
हथियार उठाने से
अधिक सुखद है समर्पण
तन-ने से बेहतर है बिछ जाना
अकड़ से अच्छी है पकड़...

इसलिए यहाँ कवितायें पढ़ने में समय ना गँवा के
कविता को खोजो
या
स्वयं बन जाओ कविता...

4 comments:

  1. अहम टूटता है तो वहां बिखर जाता है....बहोत खूब भाई अश्वनी.

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  2. वह नहीं वहम...उफ़ यह transliteration.

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  3. देर आये दुरुस्त आये..
    :-)

    मगर क्या आसान है खुद कविता बन जाना???

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  4. @vidya..aasaan nahi hai jeena bhi...

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