घर घर जा के हिंदी साहित्य की किताबें बेचता
कंधे पे टाँगे झोला
वो भोला..
मुंबई में सिर्फ खाने और शराब की होम डिलीवरी ही नहीं होती..
एक फ़ोन पे साहित्य भी घर आता है..
10 % की छूट पे..
हर बार सोचता हूँ एक-दो से ज़्यादा किताबें नहीं लूँगा..
क्योंकि भरा है घर पहले ही अत्यधिक किताबों से..
किताब रखने की जगह नज़र ही नहीं आती..
पर हर बार भोले का झोला आधा खाली हो जाता है..
और घर में जगह निकल आती है किताबें रखने की..
दरअसल यह जगह पहले मेरे दिल में बनती है..
फिर मेरा दिल बना लेता है थोड़ी जगह घर में भी..
दिल के अनोखे तहखाने हैं
जितने खोलो
उतने बढ़ते जाते हैं..
मेरा दिल मेरी सोच समझ को चित कर देता है
हमेशा...
कंधे पे टाँगे झोला
वो भोला..
मुंबई में सिर्फ खाने और शराब की होम डिलीवरी ही नहीं होती..
एक फ़ोन पे साहित्य भी घर आता है..
10 % की छूट पे..
हर बार सोचता हूँ एक-दो से ज़्यादा किताबें नहीं लूँगा..
क्योंकि भरा है घर पहले ही अत्यधिक किताबों से..
किताब रखने की जगह नज़र ही नहीं आती..
पर हर बार भोले का झोला आधा खाली हो जाता है..
और घर में जगह निकल आती है किताबें रखने की..
दरअसल यह जगह पहले मेरे दिल में बनती है..
फिर मेरा दिल बना लेता है थोड़ी जगह घर में भी..
दिल के अनोखे तहखाने हैं
जितने खोलो
उतने बढ़ते जाते हैं..
मेरा दिल मेरी सोच समझ को चित कर देता है
हमेशा...
too good a kumaar saab
ReplyDeleteदरअसल यह जगह पहले मेरे दिल में बनती है..
ReplyDeleteफिर मेरा दिल बना लेता है थोड़ी जगह घर में भी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आशावादी रचना