मैं हर दिन कविता कह सकता हूँ
क्योंकि मैं हर रोज़ कोई न कोई सपना देखता हूँ
सपने को शब्द दे दो तो कविता हो सकती है
ऐसा मैंने पाया है
जैसे मेरा कल का सपना
नन्हे हाथों से छूता मेरा चेहरा
जैसे छू रहा हो आइना
हैरान था अपना सा कोई देख कर
इक अपना सा बड़े चेहरे वाला
पर उस से ज़्यादा हैरान मैं था
कैसे सपने में दिखा गया वो मुझे
जो दिखा नहीं जीवन में
कैसे महसूस किया वो स्पर्श
कैसे आत्मसात हुई वो गंध
कैसे हुई वो अनुभूति
सपना देखते हुए सपना,सपना नहीं लगता
इसीलिए सपना लगता है मुझे कविता सा
जब घटित हो रही होती है तब
कविता भी कविता सी कहाँ लगती है
क्योंकि मैं हर रोज़ कोई न कोई सपना देखता हूँ
सपने को शब्द दे दो तो कविता हो सकती है
ऐसा मैंने पाया है
जैसे मेरा कल का सपना
इक नन्हा खेल रहा था गोद में
हुबहू मेरा अक्स नन्हे हाथों से छूता मेरा चेहरा
जैसे छू रहा हो आइना
हैरान था अपना सा कोई देख कर
इक अपना सा बड़े चेहरे वाला
पर उस से ज़्यादा हैरान मैं था
कैसे सपने में दिखा गया वो मुझे
जो दिखा नहीं जीवन में
कैसे महसूस किया वो स्पर्श
कैसे आत्मसात हुई वो गंध
कैसे हुई वो अनुभूति
सपना देखते हुए सपना,सपना नहीं लगता
इसीलिए सपना लगता है मुझे कविता सा
जब घटित हो रही होती है तब
कविता भी कविता सी कहाँ लगती है
सुदर अश्विनी बहुत सुंदर .
ReplyDeleteshukriya Raju bhai..
Deleteकभी कभी सपने और जीवन की हकीकत का सीक्वेंस बदल जाता है...पहले सपना.....फिर वो बदलेगा सच्चाई में.....
ReplyDeleteबधाई..
ji shukriya..aisa hi ho..khuda kare..
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