मेरी "लाल रंग का फ़ोन" पर मित्र पंकज त्रिवेदी की कमेन्ट के रूप में लिखी गई कमाल कविता..
बचपन में देखा था मैंने लालजी बनिए के वहां एक फ़ोन
"लालजी फ़ोन वाला" जवाब होता था
जब पूछा जाता था लालजी कौन?
फ़ोन आने से पहले लालजी एक सामान्य दुकानदार था
ग्राहक उधार खा के जाते और लालजी को डांट भी पिलाते
पर फ़ोन आने से मैंने लालजी का रुतबा बांस की तरह बढते देखा
उधार कम और नकद ज़्यादा हो गया
डांट खत्म और सम्मान पैदा हो गया
क्योंकि अब लालजी सिर्फ दुकानदार नहीं
कईओं का राजदार था
उसके फ़ोन के ज़रिये होता था प्यार
प्यार का व्यापार
व्यापार का प्यार
उसके फोन पे हंस हंस के बाते करने वाली
और
हमें देख मुंह फेरने वाली हर लड़की चरित्रहीन होती थी
विश्वसनीय सूत्र बताते थे कि ऐसी लडकियां
सुबह फ़ोन पे बात करती थी
और
दोपहर में अपना चरित्र खोती थी
ये अलग बात है कि वो सारे विश्वसनीय सूत्र
उन लड़कियों के हाथों करारे चांटे खा चुके होते थे
उनमे से एक थी "वो"
पता नहीं कौन था जिससे "वो" इतनी बाते करती थी??
उस अनदेखे अनजान सामने वाले के लिए
बस्ती के हर जवान दिल पे "वांटेड" का पोस्टर छप चुका था
क्योंकि हरेक लड़का "वो" पाने के लिए हजारों जाप जप चुका था
अगर सामने वाला "हम" में से कोई होता
तो बस्ती के लोग अब तक उसकी तेरहवीं का खाना खा चुके होते
पर नहीं
"सामने वाला" कोई बाहरवाला था
जो हमारी "वो" को हमसे पहले बिगाड़ रहा था
आखिर एक दिन फोन पर हंस हंस के बात करती रूपा का पीछा किया गया
रूपा रंगे हाथ पकड़ी गयी
"सामने वाले" के साथ
रूपा के नंगे बदन को घूरते हुए
"मार डालो इस वहशी को"
"उम्र का लिहाज तो करता"
"दूकान जला डालो, मुंह काला कर दो"
जैसे वाक्य चिल्लाते हुए हम सब कब
"अरे लड़की ही कुलटा है"
"इसे ही मज़े का चस्का है तो कोई और क्या करे"
"अरे बेचारे लालाजी कहाँ गंद में फंस गए"
बोलने लगे
पता ही नहीं चला
क्यूँ???
क्योंकि किसी ने नौकरी की एप्लीकेशन में
किसी ने अपनी माशूका को
किसी ने रिश्तेदारों को
किसी ने गाँव में अकेली पत्नी को
किसी ने विदेश गए पति को
किसी ने अपने बॉस को
किसी ने अपने दोस्त को
लालजी बनिए का ही नंबर दिया हुआ था
इस घटना के बाद पुनः प्रतिष्ठित लालजी ने
जो पहले फोन आने पर भी हम सबसे पैसे लेता था
पैसे लेने बंद कर दिए
हमारा "इनकमिंग फ्री" करके उसका "आउट-गोइंग" जारी रहा
और सालों तक लालजी की दूकान पे लालजी से
"शिलाजीत के कमाल" के किस्से सुनते हुए
हम सब राह देखते रहे
इंटरव्यू के
प्रेमिका के
बॉस के
बछड़ा पैदा होने के
गाय मरने के
ऐसे वैसे कई तरह के
फ़ोनों की.......
पंकज त्रिवेदी
बचपन में देखा था मैंने लालजी बनिए के वहां एक फ़ोन
"लालजी फ़ोन वाला" जवाब होता था
जब पूछा जाता था लालजी कौन?
फ़ोन आने से पहले लालजी एक सामान्य दुकानदार था
ग्राहक उधार खा के जाते और लालजी को डांट भी पिलाते
पर फ़ोन आने से मैंने लालजी का रुतबा बांस की तरह बढते देखा
उधार कम और नकद ज़्यादा हो गया
डांट खत्म और सम्मान पैदा हो गया
क्योंकि अब लालजी सिर्फ दुकानदार नहीं
कईओं का राजदार था
उसके फ़ोन के ज़रिये होता था प्यार
प्यार का व्यापार
व्यापार का प्यार
उसके फोन पे हंस हंस के बाते करने वाली
और
हमें देख मुंह फेरने वाली हर लड़की चरित्रहीन होती थी
विश्वसनीय सूत्र बताते थे कि ऐसी लडकियां
सुबह फ़ोन पे बात करती थी
और
दोपहर में अपना चरित्र खोती थी
ये अलग बात है कि वो सारे विश्वसनीय सूत्र
उन लड़कियों के हाथों करारे चांटे खा चुके होते थे
उनमे से एक थी "वो"
पता नहीं कौन था जिससे "वो" इतनी बाते करती थी??
उस अनदेखे अनजान सामने वाले के लिए
बस्ती के हर जवान दिल पे "वांटेड" का पोस्टर छप चुका था
क्योंकि हरेक लड़का "वो" पाने के लिए हजारों जाप जप चुका था
अगर सामने वाला "हम" में से कोई होता
तो बस्ती के लोग अब तक उसकी तेरहवीं का खाना खा चुके होते
पर नहीं
"सामने वाला" कोई बाहरवाला था
जो हमारी "वो" को हमसे पहले बिगाड़ रहा था
आखिर एक दिन फोन पर हंस हंस के बात करती रूपा का पीछा किया गया
रूपा रंगे हाथ पकड़ी गयी
"सामने वाले" के साथ
रूपा के नंगे बदन को घूरते हुए
"मार डालो इस वहशी को"
"उम्र का लिहाज तो करता"
"दूकान जला डालो, मुंह काला कर दो"
जैसे वाक्य चिल्लाते हुए हम सब कब
"अरे लड़की ही कुलटा है"
"इसे ही मज़े का चस्का है तो कोई और क्या करे"
"अरे बेचारे लालाजी कहाँ गंद में फंस गए"
बोलने लगे
पता ही नहीं चला
क्यूँ???
क्योंकि किसी ने नौकरी की एप्लीकेशन में
किसी ने अपनी माशूका को
किसी ने रिश्तेदारों को
किसी ने गाँव में अकेली पत्नी को
किसी ने विदेश गए पति को
किसी ने अपने बॉस को
किसी ने अपने दोस्त को
लालजी बनिए का ही नंबर दिया हुआ था
इस घटना के बाद पुनः प्रतिष्ठित लालजी ने
जो पहले फोन आने पर भी हम सबसे पैसे लेता था
पैसे लेने बंद कर दिए
हमारा "इनकमिंग फ्री" करके उसका "आउट-गोइंग" जारी रहा
और सालों तक लालजी की दूकान पे लालजी से
"शिलाजीत के कमाल" के किस्से सुनते हुए
हम सब राह देखते रहे
इंटरव्यू के
प्रेमिका के
बॉस के
बछड़ा पैदा होने के
गाय मरने के
ऐसे वैसे कई तरह के
फ़ोनों की.......
पंकज त्रिवेदी
कमाल है।.... वैसे यह बात तो पते की कही कि कोई लड़की फोन पर हंस के बात कर ले चरित्रहीन ही होगी। समाज भी क्या-क्या सोच पाल लेता है।
ReplyDeleteसमाज की सोच का सही प्रतिबिम्ब दिखाया है..... जो अंगूर हमें नहीं मिलते, वो खट्टे ही होते हैं.... पर ये सोच हमें ज़िंदगी को समग्र रूप से देखने नहीं देती...
ReplyDeleteकमाल किस्सा है... कितने चरित्र खंगाल दिए एक फ़ोन ने!
ReplyDeleteपंकज-
ReplyDeleteविचित्र करुण रस की कविता.धन्यवाद.
मित्र श्री लोकेन्द्र सिंह,
ReplyDeleteयह कविता किसी दूसरे पंकज त्रिवेदी जी की है... मेरी नहीं हैं..
- पंकज त्रिवेदी
सुरेंद्रनगर-गुजरात