घुमंतू आत्मा
कैद
शिथिल जिस्म में
घुमंतू सोच
कैद
कुंद दिमाग में
घुमंतू प्रेम
कैद
बासी सम्बन्ध में
घुमंतू नज़र
कैद
जबरन नकाब में
घुमंतू चाह
कैद
ओढ़ी आह में
घुमंतू घुमंतू
घुमंतू घुमंतू
रहूँ घुमंतू
सोचूं घुमंतू
चाहूँ घुमंतू
भोगूँ घुमंतू
पाऊं घुमंतू
देखूं घुमंतू
जियूं घुमंतू
घुमंतू घुमंतू
घुमंतू घुमंतू
भटकूँ घुमंतू
नष्ट घुमंतू
कष्ट घुमंतू
पस्त घुमंतू
शांत घुमंतू
मरूं घुमंतू
विलीन घुमंतू
अनदेखा घुमंतू
अनोखा घुमंतू
कैद
शिथिल जिस्म में
घुमंतू सोच
कैद
कुंद दिमाग में
घुमंतू प्रेम
कैद
बासी सम्बन्ध में
घुमंतू नज़र
कैद
जबरन नकाब में
घुमंतू चाह
कैद
ओढ़ी आह में
घुमंतू घुमंतू
घुमंतू घुमंतू
रहूँ घुमंतू
सोचूं घुमंतू
चाहूँ घुमंतू
भोगूँ घुमंतू
पाऊं घुमंतू
देखूं घुमंतू
जियूं घुमंतू
घुमंतू घुमंतू
घुमंतू घुमंतू
भटकूँ घुमंतू
नष्ट घुमंतू
कष्ट घुमंतू
पस्त घुमंतू
शांत घुमंतू
मरूं घुमंतू
विलीन घुमंतू
अनदेखा घुमंतू
अनोखा घुमंतू
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपिंजर का पंछी पंख फडफडाता है तो कैसी आवाज़ आती है ? इस प्रश्न का उत्तर है यह रचना. बहुत खूब अश्विनी-
ReplyDeleteइस घुमंती नदी का क्या होगा...समंदर में मिल जाने के बाद..
ReplyDeleteअनु
खरगोश का संगीत राग रागेश्री
ReplyDeleteपर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते
हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
My website > खरगोश
यह भी मस्त है।
ReplyDelete