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मेरा मेरा मेरा 
इतना मेरा है ज़िन्दगी में 
कुछ और सुझाई नहीं देता
कुछ और दिखाई नहीं देता
कभी देखे जो तेरा इसका उसका 
उस दृष्टि पर उतर आया है मोतिया 
उस दिल में हो गई है ब्लोकेज 
धमनियों में जम गया है कचरा
जिस्म हुआ नाकारा 
आत्मा पे छा गई है मौत
मैं तो चाहता था सबका भला 
फिर कैसे हुआ इतना स्वार्थी  
कहाँ से आया इतना मेरा मेरा मेरा
या तो दुबारा से शुरू हो सब
या मैं स्वीकार कर लूं वस्तुस्थिति 
या मैं खोज पाऊं स्वार्थ का उदगम
या मैं बन जाऊं लठ यानि पीस ऑफ़ वुड
जो भीगता हो बारिश में
सूखता हो धूप में
टूटता  हो कुल्हाड़ी से
जलता हो आग में
तड़क तड़क 
पर
चुपचाप
स्पन्दनहीन
या खुदा... 
या तो चैन दे
नहीं तो उतर आ ज़मीं पर
और भोग मुझ सा जीवन
कहलाना बंद कर खुदा 
और जूझ 'मेरे' सवालों से
  
आह्ह्ह....तू नहीं है खुदा
जा माफ़ किया तुझे बहरूपिए 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
फिर वही विचार
वही सोच
वही उधेड़बुन
अपनी पूंछ को मुंह में दबाने को
गोल गोल घूमता जैसे कुत्ता
पता नहीं क्यों  
जंगल बहुत आता है तस्वीर बन
ज़हन में
पर शांत नहीं अब जंगल
जल रहा है धूँ धूँ 
सुलग रहा है सूँ सूँ 
सुबक रहा है ऊँ ऊँ
बारिश चाहिए इसे 
जलन मिटे चुभन घटे रुदन हटे
या फिर ख़ाक हो जाए 
जड़ तक
नामोनिशान मिट जाए
कुछ बरस  बाद जब खड़ी हो यहाँ इक टाउनशिप
तो उसके किसी फ्लैट के किसी कमरे में 
बूढ़े  दादा दादी नाना नानी 
सुनाए इक जंगल की कहानी
वो जंगल जो जलता था उनके दिल में कभी
वो जंगल जो पलता  था उनके दिल में कभी 
कहानी सुनके हंसें  बच्चे
हा हा हा हा हा  
आपस में करने लगें   बातें 
कि
पगला गए हैं दादा दादी
और 
सठिया गए हैं नाना नानी
एकदम बच्चा समझते हैं हमें
कहीं होता है ऐसा जंगल?
जहां पेड़ ही पेड़ हों और बहुत से जानवर
सिली ओल्ड पीपल!!!
हा हा हा हा हा 
जंगल अब भी जल रहा है
सुलग रहा है
सुबक रहा है
नोट- आजकल ये बहुत हो रहा है मेरे साथ..कहीं के लिए निकलता हूँ..कहीं पहुँच जाता हूँ...मैं तो जंगल में सैर को निकला था..पर मैंने ये जंगल कब जला डाला..पता ही नहीं चला..सिली ओल्ड मी!!!  
 
 
 
            
        
          
        
          
        
कसमसाहट नहीं हटती
बैचनी नहीं घटती
बेसूकूनी नहीं जाती
कोई ऐसा है?
जो
शांत रहा हो..चैन से जिया हो..सुकून से गया हो
अगर ऐसा है कोई
तो
वही है भगवान..खुदा..परमात्मा..ईश्वर
मेरे लिए 
जो सूली पे लटका
आरी से काटा गया
कढाहे में उबाला गया
तमाम दुःख ज़ुल्म सहे
वो कैसा भगवान
भगवान सी शक्ति होती
तो चुन ना लेता अपने लिए तमाम सुविधायें
सुकून चैन और शान्ति
 
भगवान है या नहीं है
ये दुनिया भर में बहस का सबसे लोकप्रिय मुद्दा है
मैं कभी भी इस बहस में नहीं पड़ता 
मैं हमेशा ये मान के चलता हूँ कि भगवान है
अक्षम सा सहमा सा
दबा कुचला उपेक्षित शोषित पीड़ित गरीब
जो आजकल कुछ ज़्यादा ही दिखाई पड़ने लगा है
वही है भगवान
स्वर्ग में प्रवेश निषेध है जिसका 
जन्नत से धकिआया जिसको 
हर अच्छी सुंदर रमणीय जगह से निष्काषित
इंसान का रूप धर धरती पे पिसने को मजबूर 
सर्वहारा(सब कुछ हार गया हो जो)वर्ग का मनुष्य ही भगवान है दरअसल
अब देखो ना
कितना विवश और अक्षम है भगवान
कि जितना भी कोसो गलियाओ 
कुछ रीऐक्ट ही नहीं करता 
सही में चमत्कारी शक्तिशाली मायावी होता 
तो मुझे श्राप न दे देता?
मुझे बना देता  
तोता मेंढक या कबूतर 
नोट- मैं अपनी इस बात को बहुत देर तक और बहुत दूर तक ले जा सकता हूँ....पर मुझे पता है कि इस सफ़र में मेरे साथ कोई नहीं जाएगा..क्योंकि मेरे साथ वालों को हाज़िरी लगाने जाना है मंदिर मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे में...  
 
 
 
रात हुई
नींद कहाँ?
सुबह आएगी
जाग कहाँ?
दिन होगा
काम कहाँ?
दोपहर होगी
आराम कहाँ?
शाम होगी
शाम कहाँ?
रात होगी
नींद कहाँ?
सपने भी कहाँ?
रात भी रात सी कहाँ?
मैं भी मुझ सा कहाँ?
तुम भी तुम सी कहाँ?
समय नहीं..कुछ और ही संचालित कर रहा है
तुझे भी
मुझे भी  
 
 
 
            
        
          
        
          
        
अन्तरिक्ष अनोखा 
दिल झरोखा 
दिल ग्रह
दिल उपग्रह
दिल उल्का
दिल का तारामंडल
अन्तरिक्ष यात्री
दो दिलवाले
अन्तरिक्ष यान में बैठ 
दिल की करें सैर
दिल से करें सैर  
घना समंदर 
दिल के अन्दर
दिल घोंघा 
दिल मछली
दिल मूंगा
दिल कछुआ 
दिल सीप
अन्दर बैठे 
दो मोती
दिल की करें बातें
दिल से करें बातें
बीहड़ जंगल 
दिल मंगल मंगल
दिल बरगद
दिल पंछी
दिल झाड़ी
दिल शेर
दिल धरती  
दो बीज
उगने को आतुर
खिलने को आतुर
एक कली एक फूल
दिल के भोले    
दिल से भोले 
गाता गगन 
दिल मगन मगन
दिल हवा हवाई
दिल बादल आवारा
दिल घटा
दिल मौसम
दिल बारिश
भीगे दो दिलवाले
अंतस तक सराबोर
दिल का नाचा मोर 
दिल से नाचा मोर
मंथन मन का 
हासिल खला
रौंदा जिस्म 
हासिल खला 
खंगाली आत्मा
हासिल खला
लहू निचोड़ा 
हासिल खला 
अंत भला तो सब भला
अंत खला तो सब खला 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
तुम और मैं
जैसे 
मैं और तुम
तुम मैं सी
मैं तुम सा
तुम मुझे समझ नहीं आती 
मुझे तुम समझ नहीं पाती
समझ से हट के देखा 
मैंने तुम्हें
तुमने मुझे 
दोनों समझ गए
कुछ नहीं रखा समझ में 
मैंने तेरे लिए लहू बहाना था 
तुम मेरे माथे पे पसीना भी नहीं आने देती
तुम इंद्रधनुष रखती हो अपने साथ 
बेरंग होता हूँ जब
कुछ रंग तोड़ 
करती हो रंगीन
मुझे
दो समानांतर रेखाएं इन्फिनिटी पे मिलती प्रतीत होती हैं 
हम कुछ कदम बाद एक रेखा हो गए
रेखागणित का गणित 
फ़ेल हुआ  
मुझे क़िस्मत पे नहीं था यकीन 
क़िस्मत से मिली तुम
क़िस्मत चमक गई 
मुझे क़िस्मत पे यकीन नहीं होता
वादा था मुलाक़ात का 
थोड़ी सी बात का
बात अभी भी जारी है 
मुलाक़ात अभी भी है
दो बातूनी मिल जाएँ 
तो बात दूर तलक जाती है
प्रेम प्यार इश्क मोहब्बत  
से बड़ा है
तेरा साथ   
 
 
 
            
        
          
        
          
        
इतनी बातें घुमड़ती हैं मन में
मन नहीं रहता तन में
देह छोड़
पकड़ इक अनजान डगर
वो फिरता है मारा मारा
कहीं वो चाहता है दिल देना
कहीं वो चाहता है जान लेना
कहीं उसको चुप्पी भाए
कहीं बिन बोले रहा न जाए
कहीं वो जला दे दुनिया
कहीं बजाता फिरे हरमुनिया
कहीं टकरा जाए चट्टान से
कहीं डर जाए आसमान से
कहीं संसद पे फेंके पत्थर
कहीं पत्थर से खाए ठोकर
कहीं बतिआये इंसान सा
कहीं लगे शमशान सा
कहीं बात करे दिल से
कहीं बात करे मुश्किल से
कहीं सपना देखे जन्नत का
कहीं गाली दे जन्नत को
कहीं प्यार को माने सबकुछ
कहीं प्यार लगे बेकार
कहीं दोस्त बनाता फिरे
कहीं दोस्त हटाता फिरे
कहीं पैसे को पाना चाहे
कहीं ज़िन्दगी को पाना चाहे
कहीं लिखना चाहे कविता
कहीं मिटाना चाहे कविता
कहीं सब कुछ भुलाना चाहे
कहीं भुला  न पाए कुछ भी
कहीं जीना चाहे अनन्त 
कहीं मिटना चाहे पर्यंत 
कहीं चाहे प्रशंसा
कहीं मांगे भर्त्सना 
कहीं प्यार करे जी भर
कहीं नफरत सा रहे अमर
कहीं योगी
कहीं भोगी
कहीं सतर्क
कहीं लापरवाह
कहीं सब जान
कहीं अनजान
कहीं उदार
कहीं संकुचित
मन की इतनी उड़ाने हैं 
मैं तो बस डोर थामे हूँ
कभी देता हूँ ढ़ील
कभी कस लेता हूँ मुट्ठी
पर मन अपने मन का राजा है
थमी डोर काट देता है
बंधी मुट्ठी देता है खोल
अभी मुझे समझ नहीं आ रहा कि और क्या कहूं  
इतना पढ़के भी आपको समझ नहीं आ रहा 
तो
या तो ये मेरा कसूर है 
या
मैंने ग़लत लोगों के सामने पेश कर दिया अपना 
'मन' 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
तेरी हाँ से पहले मुझे लगने लगा था 
मुझमें कुछ कमी है
मैं नहीं हूँ प्यार के काबिल
प्यार छूता था मुझे 
पर गले नहीं लगता था
प्यार से आत्मविश्वास आता है 
आत्मविश्वास से प्यार आता है
प्यार ना मिला तो आत्मविश्वास खोने लगा
आत्मविश्वास खोने लगा तो 
प्यार की उम्मीद खोने लगी
इसी खोने पाने में तू आई
मेरी परिभाषाएं बदल डाली तूने
मेरी भाषाएँ बदल डाली तूने
तूने मुझे पहले गले लगाया 
बाद में छूआ 
किसी दक्ष मनोवैज्ञानिक की तरह तूने मुझे समेट लिया
जब सबने मुझे समझ लिया था मुर्दा
तूने सांस में सांस भर दी
मेरी ज़िन्दगी में ज़िन्दगी कर दी
अब अगर मैं कवि बनता हूँ
तुझपे कविता ग़ज़ल कहता हूँ
तुझे कविता ग़ज़ल कहता हूँ
तो कहता हूँ
किसी को अच्छा लगे तो लगे
ना लगे तो मेरी दास्ताँ सुन ले
उसके बाद भी अच्छा ना लगे 
तो
मुझे क्या
और 
तुझे भी क्या
 
तूने मुझे ऐरोगैंस सिखाई है 
एंड 
दैट्स वट आई लाइक द मोस्ट  अबाउट यू  
 
 
 
            
        
          
        
          
        
तुम
तुम हो
जैसे तुम हँसती हो
वैसे हँसने को तुम्हारा सा दिल चाहिए
मासूम और सुंदर
तुम  
तुम हो
जैसे तुम देखती हो
वैसे देखने को तुम्हारी सी नज़र चाहिए
प्यारी और शरारती
तुम में इतनी खूबियाँ हैं 
मुझमें कोई खूबी नहीं  
मैं केवल कविता कहता हूँ
केवल तुम पे कविता कहता हूँ
पर तुम मानती हो इसे मेरी सबसे बड़ी खूबी
मुझे देती हो बच्चों सी हँसी
और देखती हो उस नज़र से
जिस नज़र से मुझे किसी ने नहीं देखा आज तक
तुम प्रेम भीगी हँसी लुटाती रहो 
मैं प्यार लिपटे शब्द लुटाता रहूँगा
वादा !!!
नोट- साहिर लुधियानवी  के गीत "तुम अगर साथ देने का वादा करो..मैं यूँही मस्त नगमें लुटाता रहूँ" वाले भाव से प्रेरित..  
 
 
 
मेरी "लाल रंग का फ़ोन" पर मित्र पंकज त्रिवेदी की कमेन्ट के रूप में लिखी गई कमाल कविता..
बचपन में देखा था मैंने लालजी बनिए के वहां एक फ़ोन
"लालजी फ़ोन वाला" जवाब होता था 
जब पूछा जाता था लालजी कौन?
फ़ोन आने से पहले लालजी एक सामान्य दुकानदार था
ग्राहक उधार खा के जाते और लालजी को डांट भी पिलाते 
पर फ़ोन आने से मैंने लालजी का रुतबा बांस की तरह बढते देखा  
उधार कम और नकद ज़्यादा हो गया
डांट खत्म और सम्मान पैदा हो गया 
क्योंकि अब लालजी सिर्फ दुकानदार नहीं
कईओं का राजदार था 
उसके फ़ोन के ज़रिये होता था प्यार
प्यार का व्यापार
व्यापार का प्यार
उसके फोन पे हंस हंस के बाते करने वाली  
और 
हमें देख मुंह फेरने वाली हर लड़की चरित्रहीन होती थी
विश्वसनीय सूत्र बताते थे कि ऐसी लडकियां 
सुबह फ़ोन पे बात करती थी 
और 
दोपहर में अपना चरित्र खोती थी
ये अलग बात है कि वो सारे विश्वसनीय सूत्र 
उन लड़कियों के हाथों करारे चांटे खा चुके होते थे
उनमे से एक थी "वो" 
पता नहीं कौन था जिससे "वो" इतनी बाते करती थी??
उस अनदेखे अनजान सामने वाले के लिए 
बस्ती के हर जवान दिल पे "वांटेड" का पोस्टर छप चुका था
क्योंकि हरेक लड़का "वो" पाने के लिए हजारों जाप जप चुका था
अगर सामने वाला "हम" में से कोई होता 
तो बस्ती के लोग अब तक उसकी तेरहवीं का खाना खा चुके होते
पर नहीं
"सामने वाला" कोई बाहरवाला था 
जो हमारी "वो" को हमसे पहले बिगाड़ रहा था
आखिर एक दिन फोन पर हंस हंस के बात करती रूपा का पीछा किया गया
रूपा रंगे हाथ पकड़ी गयी 
"सामने वाले" के साथ
रूपा के नंगे बदन को घूरते हुए 
"मार  डालो इस वहशी को"
"उम्र का लिहाज तो करता"
"दूकान जला डालो, मुंह काला कर दो"
जैसे वाक्य चिल्लाते हुए हम सब कब 
"अरे लड़की ही कुलटा है"  
"इसे ही मज़े का चस्का है तो कोई और  क्या करे"
"अरे बेचारे लालाजी कहाँ गंद में फंस गए"
बोलने लगे
पता ही नहीं चला 
क्यूँ???
क्योंकि किसी ने नौकरी की एप्लीकेशन में 
किसी ने अपनी माशूका को
किसी ने  रिश्तेदारों को
किसी ने गाँव में अकेली पत्नी को
किसी ने विदेश गए पति  को
किसी ने अपने बॉस को
किसी ने अपने दोस्त को
लालजी बनिए का ही नंबर  दिया हुआ था
इस घटना के बाद पुनः प्रतिष्ठित लालजी ने  
जो पहले फोन आने  पर भी हम सबसे पैसे लेता था 
पैसे लेने बंद कर दिए
हमारा  "इनकमिंग फ्री" करके उसका "आउट-गोइंग" जारी रहा
और सालों तक  लालजी की दूकान पे लालजी से   
"शिलाजीत के कमाल" के किस्से सुनते हुए
हम सब राह देखते  रहे
इंटरव्यू के 
प्रेमिका के
बॉस के
बछड़ा पैदा होने के
गाय मरने  के
ऐसे वैसे कई तरह के
फ़ोनों की.......
पंकज त्रिवेदी  
 
 
 
मुझे साधारण लिखना है
इतना साधारण कि 
जब मेरा दिमाग कुंद हो जाए और दिल कमज़ोर
मैं तब भी अपने लिखे को समझ पाऊं
मैं इतना साधारण लिखना चाहता हूँ कि
बोझा उठाने वाला मज़दूर
 मल्टी नैशनल कम्पनी का ऑफिसर
रेड लाइट एरिया की औरतें
कॉलेज के छात्र 
दुकानदार वेटर ठेलेवाले 
सब एक बार में समझ पाएं 
सबको लगे कुछ अपना सा 
कुछ उनके दिल की बात
पर इतना साधारण भी नहीं लिखना मुझे
कि उसको समझ जाएँ भ्रष्ट वाले नेता
दोगले टाइप दलाल
सड़े हुए सूदखोर 
ज़ालिम जैसे पुलिसवाले  
जब तक मेरा लिखा 
ऐसे लोगों से बचा रहेगा 
तब तक बचा रहूँगा मैं
बची रहेगी मेरी कलम में स्याही 
बची रहेगी एक आस
मज़दूर वेश्या दुकानदार छात्र वेटर ऑफिसर ठेलेवाले 
के दिल में
हमें शक्ति देना प्रभु !!!  
 
 
 
मेरे पास एक हिंदी किताब है
मैं आँखें बंद कर उसे खोलता हूँ
किसी एक शब्द पे उंगली रखता हूँ
वो शब्द है.....फ़ोन
मैं आज इतना बुझा हूँ कि कुछ लिख के 
खुद को जगाना चाहता हूँ
कोई कविता भाव या संवेदना दस्तक नहीं दे रहे 
इसलिए आज के लिए मैंने एक खेल चुना है
जो शब्द मेरी उंगली के नीचे आएगा  
मैं उसको ले के कुछ लिखूंगा
जब मैंने अपनी ज़िन्दगी का पहला फ़ोन घुमाया था 
तो रांग  नंबर लगा था
एक निहायत भूखे बच्चे को जैसे ढेर खाना मिल जाए
और वो इतना ठूंस ले कि सांस लेनी मुश्किल हो जाए
उसी तरह एक शादी समारोह में एक फ़ोन पा गया था मैं
एक दम अकेला आमंत्रण देता लाल रंग का फ़ोन
बड़ों को जो करते देखा था..वही करने लगा मैं भी
चोगा कान से लगा
उँगलियों से कुछ भी नंबर घुमाने लगा
अचानक कान में हैलो हैलो की आवाजें आई
और मेरा चेहरा पीला पड़ गया
दिल बूम बॉक्स की तरह बजने लगा
मुझे लगा कि आज पिटाई पक्की  
मैं फ़ोन छोड़ के भागा
उसके बाद मैंने पेट दर्द का बहाना बना के 
डैडी को जल्दी घर लौटने पे मजबूर किया
वो पेट दर्द मुझे कई दिन तक होता रहा
मुझे डर था चोरी पकड़े जाने का
इसलिए दर्द के पीछे छुपा रहा था मैं अपना डर
इस घटना के काफी सालों बाद हमारे घर पे भी फ़ोन लगा 
पर इसमें उंगली फंसा के नंबर घुमाने वाला इंतजाम नहीं था
और इसका रंग भी काला था
काला कौआ कहीं का
पता नहीं क्यों
मैं अपने घर के फ़ोन को कभी पसंद नहीं कर पाया
वो लाल रंग का फ़ोन अब भी मेरे सपनों में आता है