खाया पीया नाचा बहका..
चीखा चिल्लाया चम्भला चहका..
सुना सोचा सीखा दहका..
मना रूठा सोया महका..
पाया लिया दिया लहका..
क्यूँ बहका?
क्यूँ चहका?
क्यूँ दहका?
क्यूँ महका?
क्यूँ लहका?
बिना वजह..
बेमकसद..
जैसा खिलाया..वैसा खेला..
जैसा रखा..वैसा रहा....
जैसा जिलाया वैसा जिया..
जब हाथ में मेरे कुछ भी ना था तो हाथ में मेरे लकीरें क्यूँ बनाई..
क्यूँ कहा तू ऐसा करेगा...वैसा करेगा..
कर कोई और रहा है..और भर कोई और रहा है...
चीखा चिल्लाया चम्भला चहका..
सुना सोचा सीखा दहका..
मना रूठा सोया महका..
पाया लिया दिया लहका..
क्यूँ बहका?
क्यूँ चहका?
क्यूँ दहका?
क्यूँ महका?
क्यूँ लहका?
बिना वजह..
बेमकसद..
जैसा खिलाया..वैसा खेला..
जैसा रखा..वैसा रहा....
जैसा जिलाया वैसा जिया..
जब हाथ में मेरे कुछ भी ना था तो हाथ में मेरे लकीरें क्यूँ बनाई..
क्यूँ कहा तू ऐसा करेगा...वैसा करेगा..
कर कोई और रहा है..और भर कोई और रहा है...
सब के साथ ऐसा ही होता है..
शायद...
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