December 11, 2011

गाली-अश्वनी

रुका था तो चलने को तरसता था..
चला हूँ तो रुकने को तरसता हूँ...
क्यूँ सब कुछ सही अनुपात में नहीं मिलता साला...
भूखे थे तो खाने को तरसते थे..
इफरात में मिला तो भूख ही मर गयी साली..
ठण्ड में एक कपडे को तरसते थे..
गर्मी में रज़ाई ओढ़ा गए लोग साले..
एक बूँद पानी को तरसा दिया था कभी..
अभी नाक से पानी धकेल रहे हैं साले..
गाली देने का कभी शौक नहीं था मेरा कविता में..
पर आप ही बताइए..
ऐसी बीते किसी के साथ तो गाली न निकलेगी मुंह से साला..

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