September 13, 2012

कमबख्त - अश्वनी

कविता लिखने कलम उठाई
मुद्दों विचारों सोचों
का मचा झंझावात
कलम रखी
सो गया

कमबख्त
नींद भी नहीं आई

5 comments:

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  2. बहुत बढ़िया..... छोटी, कुरकुरी और धारदार.. और गहरी बात!!!

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  3. झंझावात जगाने के बाद निकल कर ही चैन लेने देते हैं ...
    बहुत खूब ...

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  4. बेहतरीन कविताई करते हैं साब. आनंदायक है, बाकि ब्लॉग अभी पढेंगे. इस कविता पर पहले नज़र गढ़ी है .

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