November 21, 2010

गुर-अश्वनी

कंप्यूटर के सामने बैठ कर..
उँगलियों के पोरों से टाइप करते हुए...
आँखों से सही अक्षरों को तलाशते हुए..
और दिमाग से लगातार कुछ सोचते हुए एक्टिव रहने से भी कविता नहीं होती...
आँखें बंद करके...
उँगलियों को जेब में डाल के...
दिमाग को मेरिनेट करके रेफ्रिजरेटर में रख के...
कुछ पल दिल से अपने साथ रहो तो कविता होने लगती है...
कर के देखो...अच्छा लगता है...

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