July 4, 2010

शाम-अश्वनी



शाम इक नदी..
शाम इक समंदर....
मैं शाम में डूबा हुआ...
शाम डूबी मेरे अन्दर...


जब शाम आए, ख़ामोशी दे जाए


शाम की इंतज़ार में शाम हो गयी..पर जो शाम हाथ आई ..वो दोपहर साथ लायी

जब जम के बरसा जल......मैंने खिड़की पे शाम बिता दी...
मेरा वजूद इक रात सा...मेरी आहट सुबह हुई....मेरी महफ़िल इक दोपहर सी...मेरी तन्हाई शाम हुई॥

सुबह मेरी नींद है...रात मेरी करवट...दोपहर मेरी दुश्मन..और शाम मेरा घर॥

सुबह मिली...दोपहर खिली... रात पास बैठी रही... पर शाम खो गयी...
चैन भी मिला कभी... आराम की दो घड़ियाँ भी बिताईं... सुकून से भी बैठे रहे कुछ पल... पर नींद खो गयी।

5 comments:

  1. WOW VERY NICE POST AND THANS

    --->>सुप्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लागर गिरीश पंकज जी के साक्षात्कार का आखिरी भाग प्रकाशित हो चुका है । एक बार अवश्य पढे>>

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  2. poem with depth....v gd ashwani...ye talent to hame pata nahi tha....yash..

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  3. yashpal bhai..achha lag raha hai aapki attention paa ke..

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