November 22, 2009

दुविधा-अश्वनी

काफ़ी देर तक कलम लिए हाथ में रहा बैठा
लिख ना पाया अक्षर एक
इतने सारे विचारों में से लिखने लायक विचार ढूँढना होता है मुश्किल
पर कभी होता है आसान बहुत
ज़िद करके कलम उतार दी कागज़ की ज़मीन पर
जब उठाई कलम तो कुछ आड़ी तिरछी रेखाओं के इलावा कुछ न था
लेखक से चित्रकार भला
उसे सुविधा है की वो आड़ी तिरछी रेखाओं से होते हुए पहुँच जाता है वहां
जहाँ लेखक को पहुंचना होता है केवल शब्दों के पुल पर
पता नहीं मेरी यह बात आपको कितनी ठीक लगेगी
पर मेरे दिल में आई और मैंने कह दी
वैसे भी आज लिखना बहुत मुश्किल लग रहा है
हाँ बातें करने का बहुत मन है
किसी के साथ

2 comments:

  1. bahut sahi likha hai..bahut bar likhne ko chahate hain magar shbd saath nahin dete..

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  2. aur ye bhi lagta hai ki kanha se shuru karen.....yash...

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