August 7, 2010

हिसाब किताब-अश्वनी

आँखें खुली रखने कि कोशिश में बहुत देर आँखें रगड़ी तो आँखें लाल हो गयी ...
नींद से लड़ना कभी सुख देता है कभी दुःख...
रात भर जागना कभी सुकून देता है कभी बेचैनी ....
मैंने सुकून पाने के लिए बेचैनी में रात काट दी..
मैंने सुकून पाने के लिए  बेचैनी में उम्र काट दी...
मैंने दूसरों से लड़ते हुए खुद  के सामने हथियार डाल दिए...
मैं दूसरों की नज़रों में शेर रहा...अपने  सामने बिल्ली...
मैं दूसरों के सामने स्वस्थ रहा..खुद के सामने घायल...
मैं दूसरों को ज़िन्दगी समझाते समझाते खुद मौत को समझ गया...
मैं दूसरों को ज्ञान बांटते बांटते खुद रिक्त हो गया...
मैं प्यार की परिभाषा बताते बताते खुद नफरत से भर गया...
मैं दूसरों को पाते पाते खुद को खो आया...
मैं अब हिसाब किताब लगाने बैठा हूँ कि क्या खोया क्या पाया...
यह हिसाब किताब मरने तक लगे रहते हैं..
आप क्या कहते हैं..

3 comments:

  1. हम तो यहीं कहते हैं कि आपने अच्छा हिसाब किताब लगाया है।

    श्याम

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  2. अश्विन जी आपकी सारी कवितायें बहुत ही अच्छी हैं। काफी संवेदनशील और संभावनाशील कवि हैं आप। आपके ब्लॉग पर टिप्पणियाँ बहुत कम है। शायद लोगो को कविता पढ़ने मे रुचि नही है या शायद आप ही चुपचाप बिना किसी वाह-वाही के कविताई करना पसंद करते हैं इसीलिये ब्लॉग जगत मे इतने सक्रिय नहीं हैं। जो भी हो पर कवितायेँ सच मे अच्छी हैं।

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  3. shukriya shyam ji..aur shukriya somesh...koshish karoonga sakriya hone ki..

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