March 18, 2009

शीशा आईने-सा-अश्वनी

मेरे आईने ने एक अजनबी देखा..मुझको आइना अजनबी लगा अपना..
मेरी आंखों को पहचान ना पायी मेरी आँखें..
हू-बहू अक्स ना बन पाया..जाने क्या हुआ..
दृष्टि धुंधली पड़ी..मेरे आईने पे भाप जम गई..
एक रोकिंग चेयर पे बैठ के मैंने कुछ झूलते सपने देखे..
मेरा कमरा आइनों से भरा था.
हर आईने में मेरा अक्स था.
जिबरिश में बातें करने लगे सब चेहरे मेरे..
कमरे के बाहर से गुजरते लोगों ने कुछ तीखी बहस सी आवाजें सुनी..
मेरे भीतर का कोलाहल..मेरे चेहरे ब्यान करने लगे..
आईने तड़क के टूटे ताड़ ताड़ ताड़..
आइनों के टूटे हुए कांच समेट के झाडू से कचरे के डिब्बे में डाल दिए काम वाली महरी ने..

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