हलचल हुई
हिया हिला
ताके टुकुर टुकुर
अपना अक्स
झिलमिल झिलमिल
धुंधला धुंधला
हाथ बढ़ा पोछा आइना
आइना चमका
अक्स धुंधला मगर
घाव अंदरूनी
इलाज बाहरी
नज़र पे जाला
नज़र नाकारा
दृष्टि प्राप्त करनी होगी
जो मार करे दूर तक
जो वार करे दूर तक
जब दिखेंगे भीतर के ज़ख़्म
रखूंगा मरहम सा हाथ
हर लूँगा हर पीड़ा
पहले अपनी
फिर तेरी
हिया हिला
ताके टुकुर टुकुर
अपना अक्स
झिलमिल झिलमिल
धुंधला धुंधला
हाथ बढ़ा पोछा आइना
आइना चमका
अक्स धुंधला मगर
घाव अंदरूनी
इलाज बाहरी
नज़र पे जाला
नज़र नाकारा
दृष्टि प्राप्त करनी होगी
जो मार करे दूर तक
जो वार करे दूर तक
जब दिखेंगे भीतर के ज़ख़्म
रखूंगा मरहम सा हाथ
हर लूँगा हर पीड़ा
पहले अपनी
फिर तेरी
वाह अश्विनी ....कठिन और मजेदार रचना.
ReplyDelete