ख़तरनाक पड़ाव है उम्र चालीस
ज़्यादा मांगती है
कम देती है
ज़्यादा मांगती है
कम देती है
ना झपटने की ताक़त होती है
ना मांगने की हिम्मत होती है
बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है
बहुत शोर मचाना पड़ता है
मन को घंटों मनाना पड़ता है
दिमाग को दाम दंड साम भेद से चुप कराना पड़ता है
कुछ बेवजह-सी गोलियां अलमारी में जगह बना लेती हैं
बची-खुची ईगो को ज़रूरत खा लेती है
बीते हुए दिन सपना लगते हैं
चल रहे दिन पहेली
आने वाले दिनों का भरोसा नहीं होता
अब या तो साली ये अवस्था बदले या साला मैं बदल जाऊं।
ना मांगने की हिम्मत होती है
बहुत ज़ोर लगाना पड़ता है
बहुत शोर मचाना पड़ता है
मन को घंटों मनाना पड़ता है
दिमाग को दाम दंड साम भेद से चुप कराना पड़ता है
कुछ बेवजह-सी गोलियां अलमारी में जगह बना लेती हैं
बची-खुची ईगो को ज़रूरत खा लेती है
बीते हुए दिन सपना लगते हैं
चल रहे दिन पहेली
आने वाले दिनों का भरोसा नहीं होता
अब या तो साली ये अवस्था बदले या साला मैं बदल जाऊं।
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