May 28, 2012
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देखा पानी लगी प्यास... ऐसा ही है मेरा ब्लॉग की दुनिया में आना। देखा-देखी। दूर-दूर तक कोई इरादा नहीं था, पर अब जब सभी लोग कर रहे हैं तो सोचा हाथ आज़माया जाए। पर इतना तय है कि अब आ गया हूं तो कुछ अच्छा करके ही जाऊंगा।
हाँ...
ReplyDeleteकिस्मत हो सकता है शीर्षक
नहीं भी....
सब किस्मत का ही तो खेल है :-)
ReplyDeleteसब किस्मत का ही कमाल है ... जो है और जो नहीं भी ...
ReplyDeleteसब कुछ किस्मत ही है .... मगर क्या किस्मत आपके हाथों में नहीं ...
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
ऐसा क्यों सोचते हैं आप जैसा मैं ?
ReplyDeleteअश्विनी,
ReplyDeleteबहुत अच्छे.मज़ा आ गया.
अश्विनी, किस्मत में मैं नहीं मानता पर आप की इस कविता में मानता हूँ.सुन्दर रचना.
ReplyDeleteRaju bhai..bahut shukriya..
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