भीगे फर्श पे फिसला करते थे बारिश में..
पर कभी गिरे नही..
सूखी सड़क पे गिर गिर के चल रहे है अब..
सड़क पे पड़े टिन के डब्बों को ठोकर से उड़ाया करते थे..
दूर तक खड़ खड़ की आवाज़ करते जाया करते थे डिब्बे..
आवारा कुत्ते अलसाए से गर्दन घुमा के देखा करते थे आवाज़ की दिशा में..
कोई उत्साही कुत्ता भोंक भी पड़ता था कभी कभी..
अब टिन के डिब्बे में बैठ के सड़क पे पड़े छोटे पत्थरों को टायर से कुचल के निकल जाते हैं..
सड़क एक कॉमन फैक्टर है...चाहे किसी भी शहर की हो..
मेरे शहर की सड़कें तंग गलियों सी थी..
गलियों गलियों होते हम किसी छोटी सड़क तक पहुँच जाते थे..
सड़क के किनारे किनारे चल के हम फिर से किसी गली में घुस जाते..
अब गली से निकालो तो हाईवे पे कदम पड़ते हैं..
हाईवे पे पैदल चलना मुश्किल है..
मैं आजकल ज्यादतर घर पे ही रहता हूँ..